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Showing posts from March 9, 2019

जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते

 इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक निर्णय में कहा है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (डी) के अनुसार, जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते, इसके बजाय इसे शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए। न्यायमूर्ति सैयद आफताफ हुसैन रिजवी ने विमल दुबे और एक अन्य द्वारा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482  के अंतर्गत दायर याचिका को स्वीकार कर ये निर्णय दिया। आवेदकों के अधिवक्ता ने मुख्य रूप से तर्क दिया कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 323 और 504 के अंतर्गत एक एनसीआर पंजीकृत किया गया था और उसके बाद जांच की गई और आवेदकों के विरुद्ध आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया।  यह तर्क दिया गया कि मजिस्ट्रेट ने पुलिस रिपोर्ट को देखे बिना और कानून के प्रावधानों के खिलाफ अपराध का संज्ञान लिया, क्योंकि धारा 2 (डी) सीआरपीसी के अनुसार, यदि जांच के बाद पुलिस रिपोर्ट में असंज्ञेय अपराध का खुलासा होता है, तो यह शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए और जांच अधिकारी/पुलिस अधिकारी को शिकायतकर्ता माना जाएगा और शिकायत मामले की प्रक्रिया का पालन किया जाना है। धारा 2(डी) सीआरपीसी के प्रावध

क्या NDPS की धारा 42 का अनुपालन आवश्यक है - Whether compliance of section 42 NDPS act is necessary

    इस भाग में मैं यह वर्णन करूंगा कि जब पुलिस किसी ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार करती है या उसकी तलाशी लेती है जिसके कब्जे में कोई नशीला पदार्थ अवैध रूप से पाया जाता है तो क्या धारा 42 NDPS का पालन करना अनिवार्य होगा। इस प्रश्न का उत्तर निम्न वाद के निर्णय से प्राप्त होगा -          सुखदेव सिंह  बनाम  पंजाब राज्य     माननीय उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में उक्त वाद में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायलय के फैसले के खिलाफ सुखदेव सिंह की अपील पर निर्णय दिया है कि धारा 42 का पुलिस द्वारा पालन न किये जाने पर उसे बरी कर दिया गया है। धारा 42 के अन्तर्गत जांच अधिकारी को बगेर किसी वारण्ट या अधिपत्र के ही तलाशी लेने, मादक पदार्थ जब्त करने और गिरफ्तार करने का अधिकार होता है। लेकिन इस धारा में यह भी प्रावधान है कि मादक पदार्थ के बारे मे किसी अधिकारी को यदि गुप्त सूचना मिलती है तो उसे तत्काल अपने वरिष्ठ अधिकारियों को इसकी सूचना देनी चाहिए ।      इससे पहले इस तरह की सूचना तुरन्त भेजने का प्राविधान था। निर्दोष को झूठा न फसाया जा सके ,इस कारण संसद ने कानून में वर्ष 2001मे बदलाव  किया। इस संशोधन के अनु

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