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Showing posts from March 8, 2024

जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते

 इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक निर्णय में कहा है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (डी) के अनुसार, जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते, इसके बजाय इसे शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए। न्यायमूर्ति सैयद आफताफ हुसैन रिजवी ने विमल दुबे और एक अन्य द्वारा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482  के अंतर्गत दायर याचिका को स्वीकार कर ये निर्णय दिया। आवेदकों के अधिवक्ता ने मुख्य रूप से तर्क दिया कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 323 और 504 के अंतर्गत एक एनसीआर पंजीकृत किया गया था और उसके बाद जांच की गई और आवेदकों के विरुद्ध आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया।  यह तर्क दिया गया कि मजिस्ट्रेट ने पुलिस रिपोर्ट को देखे बिना और कानून के प्रावधानों के खिलाफ अपराध का संज्ञान लिया, क्योंकि धारा 2 (डी) सीआरपीसी के अनुसार, यदि जांच के बाद पुलिस रिपोर्ट में असंज्ञेय अपराध का खुलासा होता है, तो यह शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए और जांच अधिकारी/पुलिस अधिकारी को शिकायतकर्ता माना जाएगा और शिकायत मामले की प्रक्रिया का पालन किया जाना है। धारा 2(डी) सीआरपीसी के प्रावध

उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि सीआरपीसी की धारा 204 के तहत समन आदेश को हल्के में या स्वाभाविक रूप से पारित नहीं किया जाना चाहिए।

 उच्चतम न्यायालय  ने कहा है कि सीआरपीसी की धारा 204 के तहत समन आदेश को हल्के में या स्वाभाविक रूप से पारित नहीं किया जाना चाहिए।न्य संजीव खन्ना और जस्टिस जे के माहेश्वरी की पीठ ने कहा, "जब कथित कानून का उल्लंघन स्पष्ट रूप से बहस योग्य और संदिग्ध है, या तो तथ्यों की कमी और तथ्यों की स्पष्टता की कमी के कारण, या तथ्यों पर कानून के आवेदन पर, मजिस्ट्रेट को अस्पष्टताओं का स्पष्टीकरण सुनिश्चित करना चाहिए।" सुप्रीम कोर्ट इस मामले में शिकायतकर्ता ने आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 405, 420, 471 और 120बी लगाई थी। हालांकि, मजिस्ट्रेट ने आईपीसी की धारा 406 के तहत ही समन जारी करने का निर्देश दिया, न कि आईपीसी की धारा 420, 471 या 120 बी के तहत। समन के इस आदेश को इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई थी जो असफल हो गई।  अपील में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने शिकायत में किए गए अभिकथनों और शिकायतकर्ता के नेतृत्व में पूर्व समन साक्ष्य का अवलोकन करते हुए कहा कि वे आईपीसी की धारा 405, 420 और 471 के तहत निर्धारित दंडात्मक दायित्व की शर्तों और घटनाओं को स्थापित करने में विफल रहे हैं जैसा कि आरोप संविदात्

पैतृक संपत्ति में बेटियों का होगा कितना अधिकार

पैतृक संपत्ति को लेकर उच्चतम न्यायालय का बड़ा फैसला सामने आया है। जिसके अंतर्गत बताया गया है कि पैतृक संपत्ति में बेटियों का इतना अधिकार होगा। आइए नीचे खबर में जानते है इस फैसले को विस्तार स   उच्चतम न्यायालय ने महिलाओं के हक में एक बड़ा फैसला दिया है। कोर्ट ने कहा है कि पिता के पैतृक की संपत्ति में बेटी का बेटे के बराबर हक है, थोड़ा सा भी कम नहीं। अदालत कहा कि बेटी जन्म के साथ ही पिता की संपत्ति में बराबर का हकददार हो जाती है। देश की सर्वोच्च अदालत की तीन जजों की पीठ ने आज स्पष्ट कर दिया कि भले ही पिता की मृत्यु हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) कानून, 2005 लागू होने से पहले हो गई हो, फिर भी बेटियों को माता-पिता की संपत्ति पर अधिकार होगा। बेटी की मृत्यु हुई तो उसके बच्चे हकदार- सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि पिता की पैतृक संपत्ति में बेटी को अपने भाई से थोड़ा भी कम हक नहीं है। उसने कहा कि अगर बेटी की मृत्यु भी 9 सितंबर, 2005 से पहले हो जाए तो भी पिता की पैतृक संपत्ति में उसका हक बना रहता है। इसका मतलब यह है कि अगर बेटी के बच्चे चाहें कि वो अपनी मां के पिता अर्थात नाना की पैतृक संपत्ति

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