Posts

Showing posts from July 29, 2019

जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते

 इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक निर्णय में कहा है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (डी) के अनुसार, जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते, इसके बजाय इसे शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए। न्यायमूर्ति सैयद आफताफ हुसैन रिजवी ने विमल दुबे और एक अन्य द्वारा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482  के अंतर्गत दायर याचिका को स्वीकार कर ये निर्णय दिया। आवेदकों के अधिवक्ता ने मुख्य रूप से तर्क दिया कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 323 और 504 के अंतर्गत एक एनसीआर पंजीकृत किया गया था और उसके बाद जांच की गई और आवेदकों के विरुद्ध आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया।  यह तर्क दिया गया कि मजिस्ट्रेट ने पुलिस रिपोर्ट को देखे बिना और कानून के प्रावधानों के खिलाफ अपराध का संज्ञान लिया, क्योंकि धारा 2 (डी) सीआरपीसी के अनुसार, यदि जांच के बाद पुलिस रिपोर्ट में असंज्ञेय अपराध का खुलासा होता है, तो यह शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए और जांच अधिकारी/पुलिस अधिकारी को शिकायतकर्ता माना जाएगा और शिकायत मामले की प्रक्रिया का पालन किया जाना है। धारा 2(डी) सीआरपीसी के प्रावध

How fixed the capacity of child witness /बाल साक्षी की क्षमता का निर्धारण कैसे हो?

बाल  स क्षी कौन है ?      बाल साक्षी वह व्यक्ति है जिसकी आयु 16 वर्ष की पूरी नहीं हुई है। कभी -2 ऐसी परिस्थिति में अपराध कारित किया जाता है कि उस घटना का कोई व्यस्क व्यक्ति साक्षी उपलब्ध नहीं होता। और घटना स्थल पर केवल बाल साक्षी की उपलब्धता ही प्राप्त होती है तो वहाँ बाल साक्षी का साक्ष्य महत्वपूर्ण हो जाता है।         अभी माननीय उच्चतम न्यायलय के समक्ष एक हत्या का मामला पी रमेश बनाम राज् य प्रसतुत हुआ जिसमे अभियोजन के दो साक्षी आरोपी और मृतिका के नाबालिग बच्चे थे। विचारण न्यायालय ने उनके सबूतों को केवल इस आधार पर दर्ज नहीं किया कि वे उस व्यक्ति की पहचान करने में असमर्थ हैं जिसके सामने वे बयान दे रहे थे। अर्थात वे जज और वकीलों को नहीं जानते थे। यधपि बाल गवाहों ने यह कहा था कि वो अपनी माँ की उन परिस्थितियों में होने वाली मृत्यु के बारे में साक्ष्य देने के लिए आये हैं। विचारण न्यायालय ने अन्य साक्षयों के आधार पर आरोपी को भा दण्ड संहिता की धारा 302/498क के अंतर्गत दोषी ठहराया।     उक्त मामले में माननीय उच्च न्यायलय की राय       उच्च न्यायलय ने आरोपियों की अपील पर निर्णय दिया था कि

Popular posts from this blog

सप्तपदी के अभाव में विवाह को वैध नहीं माना जा सकता है।

क्या विदेश में रहने वाला व्यक्ति भी अग्रिम जमानत ले सकता है

Kanunigyan :- भरण पोषण का अधिकार :