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Showing posts from March 3, 2018

जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते

 इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक निर्णय में कहा है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (डी) के अनुसार, जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते, इसके बजाय इसे शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए। न्यायमूर्ति सैयद आफताफ हुसैन रिजवी ने विमल दुबे और एक अन्य द्वारा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482  के अंतर्गत दायर याचिका को स्वीकार कर ये निर्णय दिया। आवेदकों के अधिवक्ता ने मुख्य रूप से तर्क दिया कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 323 और 504 के अंतर्गत एक एनसीआर पंजीकृत किया गया था और उसके बाद जांच की गई और आवेदकों के विरुद्ध आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया।  यह तर्क दिया गया कि मजिस्ट्रेट ने पुलिस रिपोर्ट को देखे बिना और कानून के प्रावधानों के खिलाफ अपराध का संज्ञान लिया, क्योंकि धारा 2 (डी) सीआरपीसी के अनुसार, यदि जांच के बाद पुलिस रिपोर्ट में असंज्ञेय अपराध का खुलासा होता है, तो यह शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए और जांच अधिकारी/पुलिस अधिकारी को शिकायतकर्ता माना जाएगा और शिकायत मामले की प्रक्रिया का पालन किया जाना है। धारा 2(डी) सीआरपीसी के प्रावध

सक्षियों की परीक्षा /Examination of Witnesses

किसी भी वाद या मुकदमा में साक्षी को तीन परीक्षाओं से गुजरना पडता है ।वे निम्न हैं :- (1) मुख्य परीक्षा /Examination -in -chief :- किसी साक्षी की उस पक्षकार द्वारा, जो उसे बुलाता है, परीक्षा उसकी मुख्य परीक्षा कहलायेगी। मुख्य परीक्षा में साक्षी जब न्यायालय में आता है तो उसे शपथ दिलायी जाती है। उसका नाम व पता लिखा जाता है ।उसके बाद जो पक्षकार उसे बुलाता है वह उससे न्यायालय के समक्ष उन समस्त तथ्यों की जानकारी न्यायालय को कराता है जो उस गवाह की व्यक्तिगत जानकारी में होते हैं। इस परीक्षा में साक्षी से केवल सुसंगत तथ्यों के बारे मे सवाल किये जा सकते हैं। इस परीक्षा में साक्षी से सूचक सवाल नहीं पूछे जा सकते। (2) प्रति परीक्षा /Cross Examination :- विरोधी पक्षकार द्वारा किसी गवाह की परीक्षा को प्रति परीक्षा कहते हैं। किसी गवाह का साक्षय तब तक वैध नहीं माना जाएगा जब तक कि विपक्षी को प्रति परीक्षा का अवसर न दिया गया हो। प्रतिपरीक्षा को सत्यता का बहुत बड़ा अस्त्र माना जाता है। प्रतिपरीक्षा में साक्षी से कोई भी प्रश्न पूछा जा सकता है सिवाय विधि द्वारा प्नतिबधित प्रश्नों के। इस परीक्षा में गवाह क

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