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Showing posts from August, 2023

जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते

 इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक निर्णय में कहा है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (डी) के अनुसार, जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते, इसके बजाय इसे शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए। न्यायमूर्ति सैयद आफताफ हुसैन रिजवी ने विमल दुबे और एक अन्य द्वारा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482  के अंतर्गत दायर याचिका को स्वीकार कर ये निर्णय दिया। आवेदकों के अधिवक्ता ने मुख्य रूप से तर्क दिया कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 323 और 504 के अंतर्गत एक एनसीआर पंजीकृत किया गया था और उसके बाद जांच की गई और आवेदकों के विरुद्ध आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया।  यह तर्क दिया गया कि मजिस्ट्रेट ने पुलिस रिपोर्ट को देखे बिना और कानून के प्रावधानों के खिलाफ अपराध का संज्ञान लिया, क्योंकि धारा 2 (डी) सीआरपीसी के अनुसार, यदि जांच के बाद पुलिस रिपोर्ट में असंज्ञेय अपराध का खुलासा होता है, तो यह शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए और जांच अधिकारी/पुलिस अधिकारी को शिकायतकर्ता माना जाएगा और शिकायत मामले की प्रक्रिया का पालन किया जाना है। धारा 2(डी) सीआरपीसी के प्रावध

पुलिस को किसी संज्ञेय अपराध से संबंधित सूचना मिलने पर दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 154 के तहत प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करनी चाहिए

      सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में पुलिस को किसी संज्ञेय अपराध से संबंधित सूचना मिलने पर दंड प्रक्रिया संहिता  की धारा 154 के तहत प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज करने की अनिवार्य प्रकृति को मजबूत किया। जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस दीपांकर दत्ता  की खंडपीठ बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले की अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसने राज्य को आपराधिक मामला दर्ज करने का निर्देश देने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। खंडपीठ ने कहा, “वर्तमान मामले में अपीलकर्ता द्वारा संबंधित उत्तरदाताओं को सौंपी गई शिकायतों में संज्ञेय अपराध के घटित होने और कथित अपराधियों के नामों का भी खुलासा हुआ। मामले को ध्यान में रखते हुए हम वर्तमान अपील की अनुमति देते हैं और निर्देश देते हैं कि संबंधित उत्तरदाता अपीलकर्ता द्वारा दायर की गई शिकायतों पर कानून के अनुसार आगे बढ़ेंगे। यह फैसला ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2014) में संविधान पीठ के ऐतिहासिक फैसले के अनुरूप है, जो त्वरित और जवाबदेह कानूनी कार्यवाही सुनिश्चित करने में एफआईआर की अनिवार्य भूमिका को रेखांकित करता है। कोर्ट ने इस संबंध में निर्धारित कानून

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