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Showing posts from February 16, 2019

जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते

 इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक निर्णय में कहा है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (डी) के अनुसार, जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते, इसके बजाय इसे शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए। न्यायमूर्ति सैयद आफताफ हुसैन रिजवी ने विमल दुबे और एक अन्य द्वारा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482  के अंतर्गत दायर याचिका को स्वीकार कर ये निर्णय दिया। आवेदकों के अधिवक्ता ने मुख्य रूप से तर्क दिया कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 323 और 504 के अंतर्गत एक एनसीआर पंजीकृत किया गया था और उसके बाद जांच की गई और आवेदकों के विरुद्ध आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया।  यह तर्क दिया गया कि मजिस्ट्रेट ने पुलिस रिपोर्ट को देखे बिना और कानून के प्रावधानों के खिलाफ अपराध का संज्ञान लिया, क्योंकि धारा 2 (डी) सीआरपीसी के अनुसार, यदि जांच के बाद पुलिस रिपोर्ट में असंज्ञेय अपराध का खुलासा होता है, तो यह शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए और जांच अधिकारी/पुलिस अधिकारी को शिकायतकर्ता माना जाएगा और शिकायत मामले की प्रक्रिया का पालन किया जाना है। धारा 2(डी) सीआरपीसी के प्रावध

लोक सेवकों को प्राप्त संवैधानिक संरक्षण ( Protection For Public Servant Under Indian Constitution)

  सरकारी कार्य लोक सेवकों द्वारा किए जाते हैं इसलिए लोक सेवकों का निष्पक्षता एवं स्वतन्त्रता से कार्य करना भी आवश्यक होता है। इसलिए संविधान में लोक सेवकों को कुछ संरक्षण भी दिए गए हैं।     लोक सेवकों को राष्ट्रपति या राजपाल कभी भी उनके पद से हटा सकते हैं ।उनका सेवाकाल राष्ट्रपति या राजपाल के प्रसादपर्यन्त के अन्तर्गत होता है। फिर भी इस शक्ति पर निम्नलिखित प्रतिबंध लगाए गए हैं :-     1. इस शक्ति का प्रयोग अनुच्छेद 311 के अन्तर्गत किया जाना चाहिए। जिसके अन्तर्गत लोक सेवकों को निम्नलिखित संरक्षण प्राप्त हैं --   क. कोई भी लोक सेवक उसकी नियुक्ति करने वाले प्राधिकारी से निम्न श्रेणी के प्राधिकारी द्वारा नहीं हटाया जा सकता।   ख. किसी लोक सेवक को तब तक उसके पद से नहीं हटाया जा सकता, जब तक उसके विरुद्ध दोष सिद्ध नहीं हो जाता और उसे पूर्ण सुनवाई का अवसर प्रदान नहीं कर दिया जाता।   ग. यदि लोक सेवक को पदच्युत, पद से हटाने या पदावनत करने की शक्ति रखने वाला प्राधिकारी व्यवहारिक रूप से युक्तिसंगत नहीं समझता है, तो उसे ऐसे कारणों को लेखबद्ध करना होगा।     2. प्रसादपर्यन्त का सिद्धांत सर्वोच्च न

किसी राज्य मे संवैधानिक तंत्र की विफलता

   भारत के संविधान के अनुच्छेद 356 में यह व्यवस्था की गई है कि यदि किसी राज्य के राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति को लिखित रुप में प्रतिवेदन पत्र प्राप्त होता है या उसका अन्यथा यह समाधान हो जाए कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिसमें कि उस राज्य का संवैधानिक तंत्र विफल हो गया है या राज्य का शासन संविधान के उपबन्धों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता है तो राष्ट्रपति उद्घोषणा करके -- (क) राज्य सरकार के समस्त अथवा कोई कृत्य या राज्य के किसी अन्य निकाय अथवा प्राधिकारी में निहित कोई भी शक्तियां स्वयं ग्रहण कर सकता है। (ख) यह घोषणा कर सकता है कि राज्य विधान पालिका की शक्तियों का प्रयोग स्वयं संसद करेगा। (ग) ऐसे अनुसांगिक एवं प्रासंगिक उपबन्ध बना सकता है ,जो उद्घोषणा के प्रवर्तन के लिए उसे आवश्यक अथवा अभीष्ट लगें। वह राज्य में किसी निकाय अथवा प्राधिकारी से सम्बन्धित प्रावधानों के प्रवर्तन को पूर्णतः अथवा अंशतः निलम्बित भी कर सकता है।      हर उद्घोषणा को संसद के दोनों सदनों के  समक्ष प्रस्तुत करना आवश्यक है और ऐसी उद्घोषणा का प्रवर्तन पूर्वर्ती उद्घोषणा का विखण्डन करने वाली उद्घोषणा को छोड़कर दो माह के बा

भारतीय संविधान में आपात उपबन्ध (Emergency provision in Indiana Constitution)

भारत के संविधान के अनुच्छेद 352 से 360 तक में तीन प्रकार के आपातो की व्यवस्था की गई है। जो निम्न है - 1. राष्ट्र की सुरक्षा को खतरा । 2. किसी राज्य मे संवैधानिक तंत्र की विफलता। 3. वित्तीय आपात। 1. राष्ट्र की सुरक्षा को खतरा - भारत के संविधान के अनुच्छेद 352 में यह व्यवस्था की गई है कि यदि राष्ट्रपति का यह समाधान हो जाए कि ऐसा गम्भीर आपात पैदा हो गया है, जिससे भारत अथवा भारत के किसी भाग की सुरक्षा युद्ध, वाहीय आक्रमण अथवा सशस्त्र विद्रोह के कारण खतरे में पड गई है, तो राष्ट्रपति आपात उद्घोषणा द्वारा इस आशय की घोषणा कर सकता है।      यदि राष्ट्रपति का समाधान हो जाता है उक्त प्रकार का खतरा संनिकट है, तो भी वह आपात की घोषणा कर सकता है।     राष्ट्रपति एक उत्तरवर्ती उद्घोषणा करके किसी पूर्ववर्ती उद्घोषणा का विखण्डन अथवा परिवर्तन कर सकता है।   आपात उद्घोषणा को संसद के दोनों सदनो के समक्ष प्रसतुत करना पड़ता है। यदि संसद अनुमोदित नहीं करती है तो एक माह की समाप्ति पर उद्घोषणा का प्रवर्तन समाप्त हो जाता है।    राष्ट्रपति तब तक कोई भी आपात उद्घोषणा नहीं कर सकता जब तक कि केन्द्रीय मन्त्रिमण्

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