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Showing posts from December 30, 2021

जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते

 इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक निर्णय में कहा है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (डी) के अनुसार, जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते, इसके बजाय इसे शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए। न्यायमूर्ति सैयद आफताफ हुसैन रिजवी ने विमल दुबे और एक अन्य द्वारा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482  के अंतर्गत दायर याचिका को स्वीकार कर ये निर्णय दिया। आवेदकों के अधिवक्ता ने मुख्य रूप से तर्क दिया कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 323 और 504 के अंतर्गत एक एनसीआर पंजीकृत किया गया था और उसके बाद जांच की गई और आवेदकों के विरुद्ध आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया।  यह तर्क दिया गया कि मजिस्ट्रेट ने पुलिस रिपोर्ट को देखे बिना और कानून के प्रावधानों के खिलाफ अपराध का संज्ञान लिया, क्योंकि धारा 2 (डी) सीआरपीसी के अनुसार, यदि जांच के बाद पुलिस रिपोर्ट में असंज्ञेय अपराध का खुलासा होता है, तो यह शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए और जांच अधिकारी/पुलिस अधिकारी को शिकायतकर्ता माना जाएगा और शिकायत मामले की प्रक्रिया का पालन किया जाना है। धारा 2(डी) सीआरपीसी के प्रावध

क्या बीमा कंपनी बीमाधारक द्वारा बताई वर्तमान चिकित्सा स्थिति का हवाला देकर दावा को खारिज कर सकती है।

 उच्चतम न्यायालय ने बीमा धारकों के पक्ष में एक बड़ा फैसला किया है। अब बीमा कंपनी बीमाधारक द्वारा बताई वर्तमान चिकित्सा स्थिति का हवाला देकर दावा को खारिज नहीं कर सकती। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बैंच ने कहा कि प्रस्तावक का कर्तव्य है कि वह बीमाकर्ता को दी जाने वाली जानकारी में सभी महत्वपू्र्ण तथ्यों का उल्लेख करें। यह माना जाता है कि प्रस्तावक बीमा से जुड़ी सभी जानकारी को जानता है। बैंच ने कहा, 'हालांकि वह जो जानकारी देता है, वह उसके वास्तविक ज्ञान तक सीमित नहीं है।' यह उन भौतिक तथ्यों तक है, जो कार्य की सामान्य प्रक्रिया में उसे जानना चाहिए। न्यायालय ने आगे कहा कि एक बार बीमाधारक की मेडिकल स्थिति का आकलन करने के बाद पॉलिसी जारी हो जाए, तो बीमाकर्ता उस मौजूदा चिकिस्ता स्थिति का हवाला देकर दावा खारिज नहीं कर सकता जिसे बीमाधारक ने प्रस्ताव फॉर्म में बताया था।  सर्वोच्च न्यायालय मनमोहन नंदा द्वारा राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के आदेश के विरुद्ध संस्थित अपील पर सुनवाई कर रहा था। दरअसल यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी ने यूएस में इलाज के खर्चे का नंदा का दावा खारिज कर दिया था

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