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Showing posts from December 15, 2021

जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते

 इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक निर्णय में कहा है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (डी) के अनुसार, जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते, इसके बजाय इसे शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए। न्यायमूर्ति सैयद आफताफ हुसैन रिजवी ने विमल दुबे और एक अन्य द्वारा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482  के अंतर्गत दायर याचिका को स्वीकार कर ये निर्णय दिया। आवेदकों के अधिवक्ता ने मुख्य रूप से तर्क दिया कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 323 और 504 के अंतर्गत एक एनसीआर पंजीकृत किया गया था और उसके बाद जांच की गई और आवेदकों के विरुद्ध आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया।  यह तर्क दिया गया कि मजिस्ट्रेट ने पुलिस रिपोर्ट को देखे बिना और कानून के प्रावधानों के खिलाफ अपराध का संज्ञान लिया, क्योंकि धारा 2 (डी) सीआरपीसी के अनुसार, यदि जांच के बाद पुलिस रिपोर्ट में असंज्ञेय अपराध का खुलासा होता है, तो यह शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए और जांच अधिकारी/पुलिस अधिकारी को शिकायतकर्ता माना जाएगा और शिकायत मामले की प्रक्रिया का पालन किया जाना है। धारा 2(डी) सीआरपीसी के प्रावध

क्या नामांकन के समय वकील द्वारा लंबित अपराधिक मामले को छिपाना नामांकन को रद्द करने का आधार है।is concealment of pending criminal matter at the time of registration by advocate the basis of cacelation of registration

उच्चतम न्यायालय ने मद्रास उच्च न्यायालय के एक निर्णय की पुष्टि की है, जिसमें एक वकील के नामांकन को रद्द करने के बीसीआई के फैसले को बरकरार रखा गया है, क्योंकि वकील ने इस तथ्य को छुपा लिया था कि नामांकन के वक्त उसके विरुद्ध एक आपराधिक मामला लंबित था।                 न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की पीठ ने एक एसएलपी में निर्देश जारी किया जिसमें याचिकाकर्ता-अधिवक्ता के नामांकन को रद्द करने की पुष्टि करने वाले मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी गई थी।        बेंच ने फैसला सुनाया कि वकील ने उसके खिलाफ एक आपराधिक मामले से संबंधित तथ्यों को दबा दिया था, इसलिए याचिकाकर्ता को अधिवक्ता अधिनियम की धारा 26 (1) के अंतर्गत बार काउंसिल ऑफ इंडिया  द्वारा हटाया जाना चाहिए। न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता ने यह भी खुलासा नहीं किया कि वह एक सीए फर्म में स्लीपिंग पार्टनर भी है।                न्यायालय के अनुसार, सामग्री को छिपाना एक गंभीर मुद्दा है, इसलिए अधिवक्ता के नामांकन को रद्द करने का बीसीआई का आदेश सही है और किसी भी अवैधता से ग्रस्त नहीं है।

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