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Showing posts from February 23, 2022

जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते

 इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक निर्णय में कहा है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (डी) के अनुसार, जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते, इसके बजाय इसे शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए। न्यायमूर्ति सैयद आफताफ हुसैन रिजवी ने विमल दुबे और एक अन्य द्वारा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482  के अंतर्गत दायर याचिका को स्वीकार कर ये निर्णय दिया। आवेदकों के अधिवक्ता ने मुख्य रूप से तर्क दिया कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 323 और 504 के अंतर्गत एक एनसीआर पंजीकृत किया गया था और उसके बाद जांच की गई और आवेदकों के विरुद्ध आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया।  यह तर्क दिया गया कि मजिस्ट्रेट ने पुलिस रिपोर्ट को देखे बिना और कानून के प्रावधानों के खिलाफ अपराध का संज्ञान लिया, क्योंकि धारा 2 (डी) सीआरपीसी के अनुसार, यदि जांच के बाद पुलिस रिपोर्ट में असंज्ञेय अपराध का खुलासा होता है, तो यह शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए और जांच अधिकारी/पुलिस अधिकारी को शिकायतकर्ता माना जाएगा और शिकायत मामले की प्रक्रिया का पालन किया जाना है। धारा 2(डी) सीआरपीसी के प्रावध

क्या पत्नी का वैवाहिक गृह से बिना उचित कारण के अलग रहना परित्याग के अंतर्गत विवाह विच्छेद का आधार है

 उच्चतम न्यायालय ने एक मामले में परित्याग के आधार पर  यह कहते हुए विवाह को भंग कर दिया कि 'पत्नी' ने अपने वैवाहिक गृह से अलग रहने के लिए कोई उचित कारण दर्शित नहीं किया है। 'पति' ने क्रूरता और परित्याग के आधार पर जिला न्यायालय में विवाह विच्छेद के लिए याचिका दायर  की जिसे जिला न्यायालय ने खारिज कर दिया था। पति ने जिला न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध उच्च न्यायालय गुवाहाटी में अपील दायर की  लेकिनअपील को गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने भी खारिज कर दिया। जिसके विरुद्ध पति ने उच्चतम न्यायालय में वर्तमान अपील दायर की है जिस पर विचार करते हुए उच्चतम न्यायालय की पीठ ने कहा कि 1 जुलाई 2009 से अब तक वे अलग-अलग रह रहे हैं। न्यायालय ने कहा कि पत्नी केवल अपनी सास के कारण  दिसंबर 2009 में अपने ससुराल गई और वहां केवल एक दिन रही, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि सहवास संबंध स्थापित हुए। न्यायालय ने निर्णय में कहा, "उसने यह नहीं कहा है कि वह 21 दिसंबर 2009 को फिर से साथ रहने के इरादे से अपने ससुराल आई थी। प्रतिवादी की ओर से फिर से साथ रहने का इरादा स्थापित नहीं है। इस प्रकार, मामले के तथ्यो

क्या दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 202 की उपधारा 1 के उपबंध का पालन करना आवश्यक है

 इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया है कि  यदि कोई आरोपी मजिस्ट्रेट के अधिकार क्षेत्र से बाहर निवास करता है तो दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 204 के अंतर्गत प्रक्रिया जारी करने से पहले ऐसे मजिस्ट्रेट के लिए धारा 202 की उपधारा 1 के अंतर्गत यह अनिवार्य है कि वह या तो स्वयं मामले की जांच करे या जांच करने का निर्देश दे।  न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान की खंडपीठ ने आगे कहा कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 202 के प्रावधान के अनुसार (23.06.2006 से संशोधित के अनुसार), यह आवश्यक है कि उन मामलों में, जहां आरोपी उस क्षेत्र से परे एक स्थान पर निवास कर रहा है जिसमें संबंधित मजिस्ट्रेट अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करता है तो मजिस्ट्रेट की ओर से यह अनिवार्य है कि प्रक्रिया जारी करने से पहले वह स्वयं मामले की जांच करें या जांच करने का निर्देश देन।   मामले का संक्षिप्त विवरण  एक महिला ने अपने ससुराल वालों याचिकाकर्ता के विरुद्ध शिकायत की थी कि वे उसे मानसिक और शारीरिक रूप से परेशान करते थे और विवाह अ के लगभग 7 महीने बाद उसे उसके माता-पिता के घर वापस भेज दिया गया था।  शिकायत में आगे कहा गया कि जब उसे जा

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