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Showing posts from March, 2019

जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते

 इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक निर्णय में कहा है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (डी) के अनुसार, जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते, इसके बजाय इसे शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए। न्यायमूर्ति सैयद आफताफ हुसैन रिजवी ने विमल दुबे और एक अन्य द्वारा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482  के अंतर्गत दायर याचिका को स्वीकार कर ये निर्णय दिया। आवेदकों के अधिवक्ता ने मुख्य रूप से तर्क दिया कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 323 और 504 के अंतर्गत एक एनसीआर पंजीकृत किया गया था और उसके बाद जांच की गई और आवेदकों के विरुद्ध आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया।  यह तर्क दिया गया कि मजिस्ट्रेट ने पुलिस रिपोर्ट को देखे बिना और कानून के प्रावधानों के खिलाफ अपराध का संज्ञान लिया, क्योंकि धारा 2 (डी) सीआरपीसी के अनुसार, यदि जांच के बाद पुलिस रिपोर्ट में असंज्ञेय अपराध का खुलासा होता है, तो यह शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए और जांच अधिकारी/पुलिस अधिकारी को शिकायतकर्ता माना जाएगा और शिकायत मामले की प्रक्रिया का पालन किया जाना है। धारा 2(डी) सीआरपीसी के प्रावध

Weather Allegation Of Fault On His Advocate is Reasonable Cause For Delay condonation -क्या अपने वकील पर उपेक्षा का आरोप लगाना देरी को माँफ करने का उचित कारण है

  इस लेख में मैं माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णय के माध्यम से यह दर्षित करूंगा कि किसी विधिक मामले में देरी करने का आरोप अधिवक्ता पर लगाकर क्या देरी को माँफ कराया जा सकता है -     माननीय उच्चतम न्यायालय ने सिविल अपील संख्या 50-51/2009 ,एस्टेट आफिसर हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण एवं अन्य बनाम गोपी चन्द, के मामले में दूसरी अपील को 1942 दिन की देरी से दाखिल करने की देरी को माँफ करने से इनकार कर दिया। उक्त मामले में दूसरी अपील 1942 दिन की देरी से दाखिल की गई थी और देरी करने का आरोप अपने वकील पर लगाया गया था।   माननीय उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति ए एम सप्रे तथा न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने उक्त याचिका पर फैसला देते हुए कहा कि उनके वकील ने समय पर उचित कदम नहीं उठाया और अपील देरी से दाखिल की गई, यह कथन 1942 दिन की देरी को माँफ करने का उचित कारण नहीं है।     न्यायालय ने कहा कि हमारी राय में यह अपीलकर्ता (उनके कानूनी प्रबंधकों ) की जिम्मेदारी है कि अपील समय पर दाखिल की जाय। और यदि अपीलकर्ता को लगता है कि उनका वकील मुकदमा में दिलचस्पी नहीं ले रहा है तो उन्हें तुरन्त दूसरे वकील की म

क्या NDPS की धारा 42 का अनुपालन आवश्यक है - Whether compliance of section 42 NDPS act is necessary

    इस भाग में मैं यह वर्णन करूंगा कि जब पुलिस किसी ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार करती है या उसकी तलाशी लेती है जिसके कब्जे में कोई नशीला पदार्थ अवैध रूप से पाया जाता है तो क्या धारा 42 NDPS का पालन करना अनिवार्य होगा। इस प्रश्न का उत्तर निम्न वाद के निर्णय से प्राप्त होगा -          सुखदेव सिंह  बनाम  पंजाब राज्य     माननीय उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में उक्त वाद में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायलय के फैसले के खिलाफ सुखदेव सिंह की अपील पर निर्णय दिया है कि धारा 42 का पुलिस द्वारा पालन न किये जाने पर उसे बरी कर दिया गया है। धारा 42 के अन्तर्गत जांच अधिकारी को बगेर किसी वारण्ट या अधिपत्र के ही तलाशी लेने, मादक पदार्थ जब्त करने और गिरफ्तार करने का अधिकार होता है। लेकिन इस धारा में यह भी प्रावधान है कि मादक पदार्थ के बारे मे किसी अधिकारी को यदि गुप्त सूचना मिलती है तो उसे तत्काल अपने वरिष्ठ अधिकारियों को इसकी सूचना देनी चाहिए ।      इससे पहले इस तरह की सूचना तुरन्त भेजने का प्राविधान था। निर्दोष को झूठा न फसाया जा सके ,इस कारण संसद ने कानून में वर्ष 2001मे बदलाव  किया। इस संशोधन के अनु

भारत में संविदा कैसे होती है /Contract in India

संविदा की परिभाषा -   भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 2(ज) के अनुसार, विधि द्वारा प्रवर्तनीय करार संविदा है।    संविदा के आवश्यक तत्व        (1) कोई करार किया गया हो।        (2) करार विधि द्वारा प्रवर्तनीय हो।   (1)करार -प्रत्येक वचन या वचन का वर्ग जो एक दूसरे के लिए प्रतिफल हो ,करार कहलाता है।   (2) विधि द्वारा प्रवर्तनीय करार - धारा 10 के अनुसार, वे सभी करार संविदा हैं जो संविदा करने के लिए सक्षम पक्षकारों की स्वतंत्र सहमति से किसी विधिपूर्ण प्रतिफल के लिए और विधिपूर्ण उद्देश्य से किये गये हैं एवं अभिव्यक्त रूप से शून्य घोषित नहीं किये गये हैं ।    इसलिये मान्य संविदा के लिए निम्नलिखित शर्तें पूर्ण होना आवश्यक है -    (1) पक्षकार सक्षम हों ।    (2) सम्मति स्वतंत्र हो ।    (3) प्रतिफल और उद्देश्य विधिपूर्ण हो।     (4) अभिव्यक्त रूप से शून्य न घोषित किये गये हों ।    (5) यदि अपेक्षित हो तो करार लिखित एवं रजिस्टर्ड होना चाहिए।            करार एवं संविदा में अन्तर   1. परिभाषा सम्बन्धी - विधि द्वारा प्रवर्तनीय करार संविदा हैं जबकि प्रत्येक वचन एवं वचनों का व

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