Posts

Showing posts from 2023

जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते

 इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक निर्णय में कहा है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (डी) के अनुसार, जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते, इसके बजाय इसे शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए। न्यायमूर्ति सैयद आफताफ हुसैन रिजवी ने विमल दुबे और एक अन्य द्वारा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482  के अंतर्गत दायर याचिका को स्वीकार कर ये निर्णय दिया। आवेदकों के अधिवक्ता ने मुख्य रूप से तर्क दिया कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 323 और 504 के अंतर्गत एक एनसीआर पंजीकृत किया गया था और उसके बाद जांच की गई और आवेदकों के विरुद्ध आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया।  यह तर्क दिया गया कि मजिस्ट्रेट ने पुलिस रिपोर्ट को देखे बिना और कानून के प्रावधानों के खिलाफ अपराध का संज्ञान लिया, क्योंकि धारा 2 (डी) सीआरपीसी के अनुसार, यदि जांच के बाद पुलिस रिपोर्ट में असंज्ञेय अपराध का खुलासा होता है, तो यह शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए और जांच अधिकारी/पुलिस अधिकारी को शिकायतकर्ता माना जाएगा और शिकायत मामले की प्रक्रिया का पालन किया जाना है। धारा 2(डी) सीआरपीसी के प्रावध

सप्तपदी के अभाव में विवाह को वैध नहीं माना जा सकता है।

 प्रयागराज न्यूज :  हिन्दू धर्म में विवाह को एक पवित्र बंधन माना जाता है। विवाह के लिए कई रीति रिवाज नियत की गईं हैं। उनमें से  सात फेरे की रस्म एक महत्वपूर्ण हैं। माना जाता है कि इसके  अभाव में विवाह  वैध नहीं होता है। अब इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में इस बात को साफ कर दिया कि बिना सात फेरे अर्थात सप्तपदी के अभाव में विवाह को वैध नहीं माना जा सकता है। क्या कहा इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने  वाराणसी निवासी एक महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि हिंदू विवाह में वैधता के लिए सप्तपदी अनिवार्य तत्व है। सभी रीति रिवाजों के साथ संपन्न हुए विवाह समारोह को ही कानून की नज़र में वैध विवाह माना जा सकता है। यदि ऐसा नहीं है तो विधि की नज़र में ऐसा विवाह वैध विवाह नहीं माना जाएगा। यह टिप्पणी न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने वाराणसी निवासी स्मृति सिंह उर्फ मौसमी सिंह की याचिका की सुनवाई करते हुए की है। न्यायालय ने 21 अप्रैल 2022 को याची के विरुद्ध जारी समन तथा वाद की प्रक्रिया को रद्द कर दिया है। उसके पति  ने बिना तलाक दिए दूसरा विवाह करने का आरोप लगाते हुए वाराणसी

क्या किशोर सीआरपीसी की धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत ले सकता है;

  किशोर दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 438 के अंतर्गत अग्रिम जमानत ले सकता है और जमानत पर रहते हुए जे जे अधिनियम की धारा 14/15 के अंतर्गत पूछताछ की जा सकती है'। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की डिवीजन बेंच ने हाल ही में निर्णय दिया है कि 'किशोर सीआरपीसी की धारा 438 के अंतर्गत अग्रिम जमानत ले सकता है।  न्यायालय ने कहा  एकल न्यायाधीश द्वारा किए गए एक संदर्भ का जवाब देते हुए मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर और जस्टिस समित गोपाल की पीठ ने कहा, - एफ.आई.आर. के बाद कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चे को अधिनियम, 2015 की धारा 1(4), सीआरपीसी की धारा 438 के अंतर्गत आवेदन करने को बाहर नहीं करती है क्योंकि जे जे अधिनियम 2015 में Cr.P.C के विपरीत कोई प्रावधान नहीं है। एक किशोर या कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चे को जरूरत पड़ने पर गिरफ्तार किया जा सकता है या पकड़ा जा सकता है, लेकिन उसकी गिरफ्तारी या गिरफ्तारी के समय तक उसे बिना उपचार के नहीं छोड़ा जा सकता है। वह धारा 438 Cr.P.C के अंतर्गत अग्रिम जमानत के उपाय का पता लगा सकता है। अगर कोई आवश्यकता उत्पन्न होती है। अधिनियम 2015 की धारा 12 के अंतर्गत जमानत

पुलिस को किसी संज्ञेय अपराध से संबंधित सूचना मिलने पर दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 154 के तहत प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करनी चाहिए

      सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में पुलिस को किसी संज्ञेय अपराध से संबंधित सूचना मिलने पर दंड प्रक्रिया संहिता  की धारा 154 के तहत प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज करने की अनिवार्य प्रकृति को मजबूत किया। जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस दीपांकर दत्ता  की खंडपीठ बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले की अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसने राज्य को आपराधिक मामला दर्ज करने का निर्देश देने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। खंडपीठ ने कहा, “वर्तमान मामले में अपीलकर्ता द्वारा संबंधित उत्तरदाताओं को सौंपी गई शिकायतों में संज्ञेय अपराध के घटित होने और कथित अपराधियों के नामों का भी खुलासा हुआ। मामले को ध्यान में रखते हुए हम वर्तमान अपील की अनुमति देते हैं और निर्देश देते हैं कि संबंधित उत्तरदाता अपीलकर्ता द्वारा दायर की गई शिकायतों पर कानून के अनुसार आगे बढ़ेंगे। यह फैसला ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2014) में संविधान पीठ के ऐतिहासिक फैसले के अनुरूप है, जो त्वरित और जवाबदेह कानूनी कार्यवाही सुनिश्चित करने में एफआईआर की अनिवार्य भूमिका को रेखांकित करता है। कोर्ट ने इस संबंध में निर्धारित कानून

क्या जनरल पावर ऑफ अटार्नी अपनी शक्तियों को किसी अन्य व्यक्ति को सब- डेलीगेट कर सकता है यदि सब- डेलीगेशन को अधिकृत करने वाला कोई विशिष्ट खंड है।

  सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि जनरल पावर ऑफ अटार्नी अपनी शक्तियों को किसी अन्य व्यक्ति को सब- डेलीगेट कर सकता है यदि सब- डेलीगेशन को अधिकृत करने वाला कोई विशिष्ट खंड है। कोर्ट ने कहा, "कानून तय है कि हालांकि जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी धारक अपनी शक्तियों को किसी अन्य व्यक्ति को नहीं सौंप सकता है, लेकिन सब- डेलीगेशन की अनुमति देने वाला एक विशिष्ट खंड होने पर उसे सब- डेलीगेट किया जा सकता है।" जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम और जस्टिस पंकज मित्तल  की पीठ ने इस मुद्दे पर फैसला करते हुए यह अवलोकन किया कि क्या किसी कंपनी द्वारा अपने अधिकृत प्रतिनिधि के माध्यम से दायर की गई शिकायत सुनवाई योग्य है । कंपनी की ओर से उसके एक निदेशक कविंदरसिंह आनंद के पक्ष में जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी थी। कंपनी के जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी धारक कविंदरसिंह आनंद ने रिपंजीत सिंह कोहली नाम के एक अन्य व्यक्ति को कंपनी की ओर से नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत शिकायत दर्ज करने के लिए अधिकृत किया। मुद्दा यह था कि जब आनंद के पक्ष में जनरल पावर ऑफ अटार्नी जारी की गई थी तो क्या कोहली के माध्यम से दायर की गई शिकायत सुनवाई

Popular posts from this blog

सप्तपदी के अभाव में विवाह को वैध नहीं माना जा सकता है।

क्या विदेश में रहने वाला व्यक्ति भी अग्रिम जमानत ले सकता है

Kanunigyan :- भरण पोषण का अधिकार :