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Showing posts from December 25, 2021

जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते

 इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक निर्णय में कहा है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (डी) के अनुसार, जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते, इसके बजाय इसे शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए। न्यायमूर्ति सैयद आफताफ हुसैन रिजवी ने विमल दुबे और एक अन्य द्वारा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482  के अंतर्गत दायर याचिका को स्वीकार कर ये निर्णय दिया। आवेदकों के अधिवक्ता ने मुख्य रूप से तर्क दिया कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 323 और 504 के अंतर्गत एक एनसीआर पंजीकृत किया गया था और उसके बाद जांच की गई और आवेदकों के विरुद्ध आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया।  यह तर्क दिया गया कि मजिस्ट्रेट ने पुलिस रिपोर्ट को देखे बिना और कानून के प्रावधानों के खिलाफ अपराध का संज्ञान लिया, क्योंकि धारा 2 (डी) सीआरपीसी के अनुसार, यदि जांच के बाद पुलिस रिपोर्ट में असंज्ञेय अपराध का खुलासा होता है, तो यह शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए और जांच अधिकारी/पुलिस अधिकारी को शिकायतकर्ता माना जाएगा और शिकायत मामले की प्रक्रिया का पालन किया जाना है। धारा 2(डी) सीआरपीसी के प्रावध

दहेज मृत्यु के अपराध को गठित करने के आवश्यक तत्व क्या है। what are necessary ingredients of dowry death offence

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक फैसला सुनाया है कि एक बार अभियोजन यह साबित करने में सक्षम हो जाता है कि एक महिला को उसकी मृत्यु से कुछ समय पूर्व दहेज के लिए प्रताड़ित किया गया था, तो न्यायालय इस अनुमान के साथ आगे बढ़ेगा कि दहेज के लिए महिला को प्रताड़ित  करने वाले लोगों ने धारा 304बी के अंतर्गत दहेज मृत्यु का अपराध किया है। मुख्य न्यायाधीश रमना, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हेमा कोहली की पीठ ने आरोपी मृतक की सास और पति द्वारा संस्थित अपील की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की, जिन्होंने झारखंड उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी थी। इस मामले में मृतका के ससुराल पक्ष और पति ने कथित तौर पर दहेज के लिए मृतका को प्रताड़ित किया और उसके लापता होने के बाद पास की एक नदी से एक कंकाल मिला और आरोपियों पर दहेज हत्या का भी आरोप लगाया गया। उच्च न्यायालय ने निचली अदालत द्वारा 1999 में पारित दोषसिद्धि के आदेश की पुष्टि की थी, जो कि अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, गिरिडीह, द्वारा पारित आईपीसी की धारा 304 बी, २०1, डीपी एक्ट की धारा 3/4 के अंतर्गत पारित किया गया था। इससे क्षुब्ध होकर आरोपी ने सर्वोच्च न्यायाल

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