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Showing posts from January 4, 2022

जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते

 इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक निर्णय में कहा है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (डी) के अनुसार, जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते, इसके बजाय इसे शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए। न्यायमूर्ति सैयद आफताफ हुसैन रिजवी ने विमल दुबे और एक अन्य द्वारा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482  के अंतर्गत दायर याचिका को स्वीकार कर ये निर्णय दिया। आवेदकों के अधिवक्ता ने मुख्य रूप से तर्क दिया कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 323 और 504 के अंतर्गत एक एनसीआर पंजीकृत किया गया था और उसके बाद जांच की गई और आवेदकों के विरुद्ध आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया।  यह तर्क दिया गया कि मजिस्ट्रेट ने पुलिस रिपोर्ट को देखे बिना और कानून के प्रावधानों के खिलाफ अपराध का संज्ञान लिया, क्योंकि धारा 2 (डी) सीआरपीसी के अनुसार, यदि जांच के बाद पुलिस रिपोर्ट में असंज्ञेय अपराध का खुलासा होता है, तो यह शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए और जांच अधिकारी/पुलिस अधिकारी को शिकायतकर्ता माना जाएगा और शिकायत मामले की प्रक्रिया का पालन किया जाना है। धारा 2(डी) सीआरपीसी के प्रावध

क्या अपराधिक विचारण में दोषमुक्त होने का अनुशासनात्मक कार्यवाही पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा

 उच्चतम न्यायालय ने आदेश दिया है कि किसी आपराधिक विचारण में दोषमुक्त होने का अनुशासनात्मक कार्यवाही पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। अपराधिक विचारण और अनुशासनात्मक कार्यवाही दोनों मामलों में सबूत के मानक भिन्न भिन्न हैं और कार्यवाही भी भिन्न भिन्न क्षेत्रों में भिन्न भिन्न उद्देश्यों के लिए संचालित होती है। न्यायमूर्ति एमआर शाह और बीवी नागरत्ना की पीठ ने औद्योगिक अधिकरण द्वारा पारित एक आदेश को निरस्त करते हुए आदेश दिया कि जिसमें महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम के चालक को बहाल करने का निर्देश दिया गया था जिसकी सेवाओं को अनुशासनात्मक जांच के बाद समाप्त कर दिया गया था। चालक के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू की गई थी क्योंकि वह जिस बस को चला रहा था, उसकी जीप से टक्कर हो गई, जिससे चार यात्रियों की घटना स्थल पर ही मृत्यु हो गई। अधिकरण द्वारा यह पाया गया कि चालक की ओर से लापरवाही की गई थी और उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। अधिकरण ने माना कि आपराधिक मामले में दोषमुक्त होना कर्मचारी के बचाव में नहीं आएगा क्योंकि आपराधिक मामले में बरी होने का कारण जांच अधिकारी, पंच के लिए स्पॉट पंचनामा आदि

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