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Showing posts from January 5, 2022

जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते

 इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक निर्णय में कहा है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (डी) के अनुसार, जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते, इसके बजाय इसे शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए। न्यायमूर्ति सैयद आफताफ हुसैन रिजवी ने विमल दुबे और एक अन्य द्वारा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482  के अंतर्गत दायर याचिका को स्वीकार कर ये निर्णय दिया। आवेदकों के अधिवक्ता ने मुख्य रूप से तर्क दिया कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 323 और 504 के अंतर्गत एक एनसीआर पंजीकृत किया गया था और उसके बाद जांच की गई और आवेदकों के विरुद्ध आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया।  यह तर्क दिया गया कि मजिस्ट्रेट ने पुलिस रिपोर्ट को देखे बिना और कानून के प्रावधानों के खिलाफ अपराध का संज्ञान लिया, क्योंकि धारा 2 (डी) सीआरपीसी के अनुसार, यदि जांच के बाद पुलिस रिपोर्ट में असंज्ञेय अपराध का खुलासा होता है, तो यह शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए और जांच अधिकारी/पुलिस अधिकारी को शिकायतकर्ता माना जाएगा और शिकायत मामले की प्रक्रिया का पालन किया जाना है। धारा 2(डी) सीआरपीसी के प्रावध

क्या चालक अनुज्ञप्ति नवीनीकृत नहीं होने पर बीमा कंपनी प्रतिकर से बच सकती है

  क्या दुर्घटना के समय चालक अनुज्ञप्ति नवीनीकृत  नहीं होने पर बीमा कंपनी प्रतिकर देने के उत्तरदायित्व से बच सकती है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक निर्णय दिया है जिससे यह मत व्यक्त किया है कि यदि दुर्घटना के समय चालक अनुज्ञप्ति रिन्यू नहीं है तो भी बीमा कंपनी को पीड़ित को प्रतिकर का भुगतान करना होगा। वह प्रतिकर देने से नहीं बच सकती। यह आदेश इलाहाबाद हाईकोर्ट की एकल पीठ ने न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है। न्यायालय ने कहा कि चालक अनुज्ञप्ति का रिन्यूअल नहीं होने से यह साबित नहीं होता है कि चालक वाहन चलाने में सक्षम नहीं था। यदि कंपनी प्रतिकर का भुगतान करने से बचना चाहती है, तो उसे यह साबित करना पड़ेगा कि चालक वाहन चलाने के लिए अयोग्य था।  इसलिए बीमा कंपनी दावे के भुगतान के लिए उत्तरदायी है। बीमा कंपनी इस आधार पर छूट नहीं प्राप्त कर सकती कि चालक की अनुज्ञप्ति का रिन्यूअल नहीं कराया गया है। घटना 22 जुलाई १९९२ की मेरठ जनपद की है। बस चालक सुधीर मोहन तनेजा बस को साइड में करते समय ट्रक की चपेट में आ गया था। उपचार के दौरान उसकी मृत्यु हो गई। याचिकाकर्ता 

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