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Showing posts from September 3, 2022

जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते

 इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक निर्णय में कहा है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (डी) के अनुसार, जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते, इसके बजाय इसे शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए। न्यायमूर्ति सैयद आफताफ हुसैन रिजवी ने विमल दुबे और एक अन्य द्वारा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482  के अंतर्गत दायर याचिका को स्वीकार कर ये निर्णय दिया। आवेदकों के अधिवक्ता ने मुख्य रूप से तर्क दिया कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 323 और 504 के अंतर्गत एक एनसीआर पंजीकृत किया गया था और उसके बाद जांच की गई और आवेदकों के विरुद्ध आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया।  यह तर्क दिया गया कि मजिस्ट्रेट ने पुलिस रिपोर्ट को देखे बिना और कानून के प्रावधानों के खिलाफ अपराध का संज्ञान लिया, क्योंकि धारा 2 (डी) सीआरपीसी के अनुसार, यदि जांच के बाद पुलिस रिपोर्ट में असंज्ञेय अपराध का खुलासा होता है, तो यह शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए और जांच अधिकारी/पुलिस अधिकारी को शिकायतकर्ता माना जाएगा और शिकायत मामले की प्रक्रिया का पालन किया जाना है। धारा 2(डी) सीआरपीसी के प्रावध

क्या धारा 145 सीआरपीसी के तहत कार्यवाही समाप्त करते समय संपत्ति पर पक्षकारों के अधिकारों के संबंध में मजिस्ट्रेट टिप्पणी कर सकता है

 धारा 145 सीआरपीसी के तहत कार्यवाही समाप्त करते समय संपत्ति पर पक्षकारों के अधिकारों के संबंध में मजिस्ट्रेट टिप्पणी नहीं कर सकते।   सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दीवानी मुकदमों के लंबित होने के कारण सीआरपीसी की धारा 145 के तहत कार्यवाही को समाप्त करते हुए एक मजिस्ट्रेट कोई टिप्पणी नहीं कर सकता है या संबंधित संपत्ति के लिए पक्षकारों के अधिकारों के संबंध में कोई निष्कर्ष नहीं निकल सकता है।  सुप्रीम कोर्ट ने कहा धारा 145 उन मामलों में कार्यकारी मजिस्ट्रेट की शक्ति से संबंधित है जहां भूमि या पानी से संबंधित विवाद से शांति भंग होने की संभावना है। यह प्रावधान करता है कि 'जब भी एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट किसी पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट या अन्य जानकारी से संतुष्ट हो जाता है कि उसके स्थानीय अधिकार क्षेत्र के भीतर किसी भी भूमि या पानी या उसकी सीमाओं के संबंध में शांति भंग होने की संभावना है, तो वह लिखित रूप में एक आदेश दें, जिसमें उसके संतुष्ट होने का आधार बताया गया हो। इस तरह के विवाद में संबंधित पक्षों को एक निर्दिष्ट तिथि और समय पर व्यक्तिगत रूप से या प्लीडर द्वारा अपने न्यायालय में उपस्थित होने के

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