जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते

 इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक निर्णय में कहा है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (डी) के अनुसार, जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते, इसके बजाय इसे शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए। न्यायमूर्ति सैयद आफताफ हुसैन रिजवी ने विमल दुबे और एक अन्य द्वारा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482  के अंतर्गत दायर याचिका को स्वीकार कर ये निर्णय दिया। आवेदकों के अधिवक्ता ने मुख्य रूप से तर्क दिया कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 323 और 504 के अंतर्गत एक एनसीआर पंजीकृत किया गया था और उसके बाद जांच की गई और आवेदकों के विरुद्ध आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया।  यह तर्क दिया गया कि मजिस्ट्रेट ने पुलिस रिपोर्ट को देखे बिना और कानून के प्रावधानों के खिलाफ अपराध का संज्ञान लिया, क्योंकि धारा 2 (डी) सीआरपीसी के अनुसार, यदि जांच के बाद पुलिस रिपोर्ट में असंज्ञेय अपराध का खुलासा होता है, तो यह शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए और जांच अधिकारी/पुलिस अधिकारी को शिकायतकर्ता माना जाएगा और शिकायत मामले की प्रक्रिया का पालन किया जाना है। धारा 2(डी) सीआरपीसी के प्रावध

Dishonour Of Cheque /चैक का अनादरण

खाते में निधि की अपर्याप्तता आदि के कारण चैक का अनादरण (धारा 138):-
       जहाँ किसी व्यक्ति ने किसी ऋण या दायित्व के निर्वाह के लिए बैंक के खाते का चैक दिया है और वह खाते में अपर्याप्त निधि या अन्य कारण से असंदत्त लौटा दिया है तो यह समझा जायेगा कि ऐसे व्यक्ति ने अपराध किया है और जिसे दो वर्ष तक के कारावास या चैक की रकम से दुगुनी तक जुर्माना या दोनों से दंडनीय होगा : परन्तु जब यदि :-
   (1)चैक लिखने की तारीख से तीन महीने के अन्दर चैक बैंक में प्रस्तुत न कर दी गई हो।
(2) चैक के धारक या पाने वाले ने असंदत्त चैक के वापसी की सूचना की प्राप्ति के बाद तीस दिन के भीतर लेखीवाल को लिखित नोटिस द्वारा धन की मांग न की हो।
(3) ऐसी चैक का लेखीवाल नोटिस प्राप्त करने के बाद 15 दिन के भीतर धनराशि का सन्दाय करने में असफल नही रहा हो।
 
  धारा 139:- यदि विपरीत साबित न हो तो यह समझा जायेगा कि चैक ऋण के संदाय के लिए गया था।

   धारा 140:- ऐसे अपराध में यह प्रतिरक्षा नहीं होगी कि चैक जारी करते समय वह यह नहीं जानता था कि चैक अनाद्रत हो जाएगा।

  धारा 141:- कम्पनियों द्वारा अपराध ।

   धारा 142:- जब मांग की नोटिस की अवधि समाप्त होने पर धारक एक महीने के अन्दर लिखित शिकायत द्वारा वाद दायर कर सकता है, जो ऐसे प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय में दायर किया जायेगा जिसकी अधिकारिता के भीतर धारक का बैंक है या लेखीवाल का बैंक है।
         लेकिन न्यायालय उचित कारण से एक महिना की अवधि को बढा सकेगा। उक्त अपराध शमनीय होगा। धारा 143 ।

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