जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते

 इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक निर्णय में कहा है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (डी) के अनुसार, जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते, इसके बजाय इसे शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए। न्यायमूर्ति सैयद आफताफ हुसैन रिजवी ने विमल दुबे और एक अन्य द्वारा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482  के अंतर्गत दायर याचिका को स्वीकार कर ये निर्णय दिया। आवेदकों के अधिवक्ता ने मुख्य रूप से तर्क दिया कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 323 और 504 के अंतर्गत एक एनसीआर पंजीकृत किया गया था और उसके बाद जांच की गई और आवेदकों के विरुद्ध आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया।  यह तर्क दिया गया कि मजिस्ट्रेट ने पुलिस रिपोर्ट को देखे बिना और कानून के प्रावधानों के खिलाफ अपराध का संज्ञान लिया, क्योंकि धारा 2 (डी) सीआरपीसी के अनुसार, यदि जांच के बाद पुलिस रिपोर्ट में असंज्ञेय अपराध का खुलासा होता है, तो यह शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए और जांच अधिकारी/पुलिस अधिकारी को शिकायतकर्ता माना जाएगा और शिकायत मामले की प्रक्रिया का पालन किया जाना है। धारा 2(डी) सीआरपीसी के प्रावध

Hindu Adoption /हिन्दू दत्तक ग्रहण

मान्य दत्तक ग्रहण की अपेक्षाएं :- दत्तक ग्रहण एवं भरण पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 6 केअनुसार  मान्य दत्तक ग्रहण की निम्न अपेक्षाएं हैं   

(1) दत्तक ग्रहीता व्यक्ति दत्तक ग्रहण करने की क्षमता रखता हो।
(2) दत्तक देने वाला व्यक्ति ऐसा करने की क्षमता रखता हो।
(3) दत्तक लिया जाने वाला व्यक्ति इस योग्य हो।
(4) दत्तक ग्रहण की अन्य शर्त का पालन किया गया हो।

    धारा 7 के अनुसार पुरूष हिन्दू की दत्तक ग्रहण की सामर्थ्य-कोई पुरुष जो हिन्दू है, स्वस्थ चित है और व्यस्क है वह दत्तक ग्रहण द्वारा पुत्र या पुत्री दत्तक ले सकेगा।
      यदि वह विवाहित है तो पत्नी की सम्मति आवश्यक है। यदि एक से अधिक पत्तियां है तो सभी की सम्मति आवश्यक है जब तक कि
         उसने संसार का परित्याग न किया हो, धर्म परिवर्तन न किया हो,या सक्षम न्यायालय द्वारा पागल न घोषित की गई हो।

      धारा 8 हिन्दू नारी को दत्तक लेने की सामर्थ्य :- एक अविवाहित, तलाक शुदा या विधवा हिन्दू नारी पुत्र या पुत्री दत्तक ले सकेगी। किन्तु विवाहित नारी तभी दत्तक ले सकेगी यदि -
     उसका पति सन्यासी हो गया हो, उसने धर्म परिवर्तन कर लिया हो या सक्षम न्यायालय द्वारा पागल घोषित कर दिया गया हो।

   धारा 9 दत्तक देने के लिए सक्षम व्यक्ति :- बालक के पिता या माता या न्यायालय की अनुमति से संरक्षक बालक को दत्तक मे देने के लिए समर्थ हैं।
      यदि पिता जीवित है तो वह माता की सम्मति से बालक को दत्तक दे सकता है।
       लेकिन माता की सम्मति लेना आवश्यक नहीं है यदि माता ने संसार का परित्याग कर दिया है, धर्म परिवर्तन कर लिया है या वह किसी सक्षम न्यायालय द्वारा पागल घोषित की जा चुकी है।

   माता भी किसी बालक को दत्तक में दे सकती ह, यदि बालक का पिता -
   (1) मर गया हो , (2) संसार का परित्याग कर दिया हो, (3) धर्म परिवर्तन कर लिया हो, या (4) किसी सक्षम न्यायालय द्वारा पागल घोषित कर दिया गया हो।
   जब बालक के माता और पिता दोनों मर गए हों या बालक को दत्तक में देने में अयोग्य हो गए हों तो उसका संरक्षक न्यायालय की अनुमति से बालक को दत्तक ग्रहण में दे सकेगा।

    धारा 10 - दत्तक लिया जाने वाला व्यक्ति :- (1) वह हिंदू हो। (2) पूर्व में दत्तक मे न लिया गया हो। (3) अविवाहित हो। (4) 15 वर्ष से कम आयु का हो।

    मान्य दत्तक ग्रहण की अन्य शर्तें- धारा 11 :-

(1) यदि दत्तक ग्रहण पुत्र का है तो दत्तकग्रहीता पिता या माता के कोई हिन्दू पुत्र, पौत्र या प्रपौत्र दत्तक ग्रहण के समय जीवित न हो।
(2) यदि दत्तक ग्रहण पुत्री का है तो दत्तकग्रहीता पिता या माता के कोई हिन्दू पुत्री या पुत्र की पुत्री दत्तक ग्रहण के समय जीवित न हो।
(3) यदि दत्तकग्रहीता और दत्तक लिया जाने वाला व्यक्ति भिन्न लिंग के हैं तो दत्तकग्रहीता बालक से कम से कम आयु में 21 वर्ष बडा हो।
(4) एक ही बालक को एक साथ दो या अधिक व्यक्तियों द्वारा दत्तक नहीं लिया जा सकेगा।
(5) दत्तक लिया जाने वाला व्यक्ति जन्म के परिवार से  अपने दत्तक ग्रहण वाले परिवार में हस्तान्त्रित करने के आशय से वास्तव में लिया और दिया जाना चाहिए।

  किन्तु दत्तक होम का किया जाना दत्तकग्रहण की मान्यता के लिए आवश्यक नहीं है।

   दत्तक ग्रहण के परिणाम - धारा 12 :- दत्तकग्रहीता बालक की बाबत यह समझा जायेगा कि दत्तक ग्रहण की तारीख से वह अपने दत्तकग्रहीता पिता या माता का सभी प्रयोजनों के लिए बालक है और यह समझा जायेगा कि उस बालक के अपने जन्म के कुटुम्ब के साथ सभी सम्बन्ध ऐसी तारीख से टूट गए हैं।

अपवाद :-(क) परन्तु वह बालक किसी ऐसे व्यक्ति से विवाह नही कर सकेगा जिससे कि नहीं कर सकता था यदि वह अपने जन्म के कुटुम्ब में ही बना रहता,
(ख) जो कोई सम्पत्ति दत्तक ग्रहण के पूर्व दत्तक ग्रहण  किये गये बालक में निहित हो गई हो तो ऐसे बालक में निहित बनी रहेगी, अपने जन्म के कुटुम्ब के नातेदारों के भरण पोषण करने के दायित्व के अधीन।
(ग) जो सम्पदा किसी व्यक्ति में दत्तक ग्रहण के पूर्व निहित हो गई है तो वह बालक किसी ऐसे व्यक्ति को उस सम्पदा में से आनिहित नहीं करेगा।

     दत्तक माता का अवधारण -धारा 14 :-
(1) जहाँ कोई हिन्दू, जिसकी पत्नी जीवित है, किसी बालक को दत्तक में लेता है तो वह दत्तक माता समझी जायेगी।
(2) जहाँ दत्तक ग्रहण करने वाले व्यक्ति के एक से अधिक पत्नियां हैं वहां उनमें से पहले विवाहित दत्तक माता समझी जायेगी और अन्य सौतेली माताऐं समझी जायेगी।
(3) जहाँ कोई विधुर या अविवाहित पुरूष किसी बालक को दत्तक में ग्रहण करता है और वहाँ ऐसी कोई पत्नी, जिससे कि वह बाद में विवाह करता है, दत्तक बालक की सौतेली माता समझी जायेगी ।
(4) जहाँ कोई विधवा याअविवाहिता नारी किसी बालक को दत्तक में ग्रहण करती है और वह बाद में विवाह करती है, वहाँ वह पति दत्तक बालक का सौतेला पिता समझा जायेगा।

  धारा 15 :- विधिमान्य दत्तक दत्तक ग्रहण करने वाले या बालक या फिर किसी भी अन्य व्यक्ति द्वारा समाप्त न किया जा सकता है।

  धारा 16 :- दत्तक ग्रहण के अभिलिखित पंजीकृत दस्तावेज होने को न्यायालय यह उपधारणा करेगा कि दत्तक अधिनियम के उपबन्धों के अनुसार हुआ है।

  धारा 17 :- दत्तक ग्रहण में कोई भी संदाय या इनाम न तो प्राप्त करेगा और न प्राप्त करने का करार करेगा। और यदि कोई ऐसा करता है तो वह कारावास से जो छह माह तक हो सकेगा या जुर्माने से या दोनों से दंडनीय होगा।

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