जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते

 इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक निर्णय में कहा है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (डी) के अनुसार, जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते, इसके बजाय इसे शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए। न्यायमूर्ति सैयद आफताफ हुसैन रिजवी ने विमल दुबे और एक अन्य द्वारा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482  के अंतर्गत दायर याचिका को स्वीकार कर ये निर्णय दिया। आवेदकों के अधिवक्ता ने मुख्य रूप से तर्क दिया कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 323 और 504 के अंतर्गत एक एनसीआर पंजीकृत किया गया था और उसके बाद जांच की गई और आवेदकों के विरुद्ध आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया।  यह तर्क दिया गया कि मजिस्ट्रेट ने पुलिस रिपोर्ट को देखे बिना और कानून के प्रावधानों के खिलाफ अपराध का संज्ञान लिया, क्योंकि धारा 2 (डी) सीआरपीसी के अनुसार, यदि जांच के बाद पुलिस रिपोर्ट में असंज्ञेय अपराध का खुलासा होता है, तो यह शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए और जांच अधिकारी/पुलिस अधिकारी को शिकायतकर्ता माना जाएगा और शिकायत मामले की प्रक्रिया का पालन किया जाना है। धारा 2(डी) सीआरपीसी के प्रावध

क्या किराएदार किसी भवन का स्वामी बन सकता है और किरायानामा 11 महीने ही क्यों बनाया जाता है

 किराया अनुबंध और किरायानामा के लिए क्या क्या कार्य आवश्यक होते हैं यह जानकारी प्राप्त करना बहुत जरूरी होता है ताकि भविष्य में किसी परेशानी का सामना न करना पड़े। तो आओ जानते हैं उन सभी आवश्यक बातों को। जो कि निम्न प्रकार हैं-

 अनुबंध और किराए की रसीद आवश्यक है

किराएदारी के मामलों  में अक्सर यह देखा गया है कि किराया एग्रीमेंट और किराए की रसीद के सम्बन्ध में मकान स्वामी और किराएदार सतर्क नहीं होते हैं। भवन स्वामी भी अपना किरायानामा बनवाने में चूक करते है और किराएदार भी इस पर बल नहीं देते हैं जबकि यह बहुत घातक हो सकता है। किसी भी संपत्ति को किराए पर देने  पूर्व उसका किरायानामा निष्पादित किया जाना चाहिए और हर महीने के किराए की वसूली की  भवन स्वामी द्वारा किराएदार को किराया प्राप्ति की रसीद देना चाहिए । ऐसा करने से  सबूत भविष्य के लिए उपलब्ध रहते हैं। और इससे  भविष्य में यह साबित किया जा सकता है कि जो व्यक्ति भवन पर अपना कब्जा बना कर बैठा है वह भवन पर एक किराएदार की हैसियत से है। यदि ऐसा कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं हो तो भवन पर कब्जा रखने वाला व्यक्ति यह भी क्लेम कर सकता है कि वह भवन स्वामी की हैसियत से कब्जा रखता है या उसे वह दान में प्राप्त हुआ है अन्य भी दूसरे बहुत सारे विकल्प है जिनके आधार वह यह दावा कर सकता है कि वह किस हैसियत से भवन पर काबिज।

इन कठिनाईयों से बचने के लिए किरायानामा और किराए की रसीद आवश्यक रूप से निष्पादित की जानी चाहिए उसके बाद ही किसी भवन को किराए पर देना चाहिए इससे भवन स्वामी तथा किराएदार दोनों के विधिक अधिकार सुरक्षित रहते हैं।


पट्टा और किराया में अंतर


सामान्यत पट्टा और किराया को अलग-अलग समझा जाता है बल्कि पट्टा और किराया एक ही चीज है पट्टे का अर्थ होता है किसी भी संपत्ति को एक निश्चित समय  के लिए या अनिश्चित समय के लिए किसी दूसरे व्यक्ति को उपभोग करने के लिए प्रदान कर देना और उसके बदले में कोई निश्चित धनराशि ले लेना। इसे अंग्रेजी में लीज कहा जाता हे। सामान्यत सरकार पट्टे जारी करती है तो ऐसा समझा जाता है कि पट्टे सरकार ही देती है जबकि किसी भी संपत्ति को किराए पर लेना भी पट्टा ही होता है। इसका स्पष्ट उल्लेख संपत्ति अंतरण अधिनियम में मिलता है।


जब  किसी संपत्ति को पट्टे पर दिया जाता है तो उसका एक पट्टा विलेख निष्पादित किया जाता है। संपत्ति का स्वामी अपनी स्वतंत्र सहमति से यह पट्टा निष्पादित करता है कि वह संपत्ति का स्वामी है और वह किसी दूसरे व्यक्ति को संपत्ति का उपयोग करने के लिए एक निश्चित प्रतिफल के बदले संपत्ति अंतरित कर रहा है। अब इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि जो व्यक्ति संपत्ति पर कब्जा रखता हैं उस व्यक्ति का कब्जा एक किराएदार के रूप में हैं अर्थात उस भूमि या भवन को पट्टे पर लिया है।

किरायानामा 11 महीने का ही क्यों होता है?

 प्रायः यह भी देखा जाता है कि जब भी किसी भवन या भूमि को किराए पर दिया जाता है तो भवन स्वामी 11 महीने का किरायानामा निष्पादित करता है जिससे लोग यह मानते हैं कि किरायानामा 11 महीने का ही होता है जबकि यह बात पूर्ण रूप से ठीक नहीं है।

11 महीने का किरायानामा की व्यवस्था का कानून में कहीं कोई उल्लेख नहीं  है। यह तो लोगों द्वारा मान ली गई एक प्रथा है। कोई भी किरायानामा ११ महीने से कम का या अधिक का भी हो सकता है और 50 वर्ष तक का भी हो सकता है और एक अनिश्चित समय के लिए भी हो सकता है। इसके लिए कोई निश्चित समय नहीं है यदि किसी भी संपत्ति को १वर्ष  से अधिक समय के लिए किराए पर दिया जाता है तब ऐसी संपत्ति के पट्टे का पंजीकरण कराना आवश्यक होता है।

इसका उल्लेख भारतीय रजिस्ट्रेशन अधिनियम के अंतर्गत मिलता है जहां यह स्पष्ट रुप से लिखा हुआ है कि अगर ११ वर्ष से अधिक समय के लिए किसी संपत्ति को किराए पर दिया जाता है तब ऐसी स्थिति में उस किरायानामा को रजिस्टार कार्यालय में पंजीकृत करवाया जाएगा। अब यहां पर पंजीकरण का कार्य थोड़ा महंगा होता है, वहां पर स्टांप शुल्क देना होता है पंजीकरण का शुल्क देना होता है और फिर किरायानामा रजिस्टर्ड होता है तभी उसे कानूनी मान्यता मिलती है।

यहां पर लोग किरायानामा के पंजीकरण से बचने के लिए यह विकल्प चुनते करते हैं कि किरायानामा को 11 महीने से अधिक का बनाते ही नहीं है और किरायानामा में यह लिख देते हैं कि 11 महीने के बाद किराया कितना रहेगा और हर साल किराए में कितनी बढ़ोतरी होगी इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि एक बार किरायानामा बना लेने से अगली बार बनाने की आवश्यकता नहीं होगी और अगली बार मौखिक रूप से ही किरायानामा रहेगा।


एक बार का किरायानामा साक्ष्य के रूप में काम आ जाता है इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि किसी संपत्ति का कब्जा किसी दूसरे व्यक्ति को एक किराएदार की हैसियत से दिया गया है और उसमें एक निश्चित धनराशि सम्पत्ति स्वामी द्वारा तय की गई है जो किराए के रूप में किराएदार द्वारा दी जाएगी। इसके अलावा 11 महीने के किरायानामा जैसी कोई भी चीज कानून में कहीं भी उपलब्ध नहीं है यह केवल पंजीकरण से बचने का एक उपाय मात्र है।

किरायानामा को एक हजार या कम से कम ₹500 के गैर न्यायिक स्टांप पर लिखकर किसी नोटरी अधिवक्ता से सत्यापित करवाया जा सकता है। उसके सत्यापित करने से इस किरायानामा को विधिक मान्यता मिल जाती है।

अंत में हम यह स्पष्ट रूप से कह सकते हैं कि किसी भी संपत्ति का किराएदार उसका स्वामी तब तक नहीं हो सकता है जब तक वह संपत्ति को क्रय नहीं कर लेता है या दान के रुप में या वसीयत के रूप में प्राप्त नहीं करता है। केवल एक किराएदार की हैसियत से वह संपत्ति का स्वामी कभी भी नहीं बन सकता।


संपत्ति का स्वामी बनने के लिए संपत्ति को क्रय करना पड़ता है या दान द्वारा लेना होता है या फिर वसीयत के द्वारा संपत्ति को प्राप्त करना होता है। एक किराएदार के रूप में संपत्ति कभी भी नहीं मिलती है। किराएदार को संपत्ति पर केवल एक उपभोग करने का अधिकार प्राप्त होता है और उसके बदले भी उसे एक निश्चित धनराशि संपत्ति के स्वामी को देना पड़ती है।

 यदि एक लंबे समय के लिए किसी व्यक्ति को भवन किराए पर दिया जाए तब एक पट्टा पंजीकृत करवाया जाना चाहिए जैसे कि सरकार अपनी संपत्ति जब भी किसी व्यक्ति को किराए पर देती है तब उससे एक निश्चित अवधि के लिए एकमुश्त राशि लेकर उसे पट्टा लिखकर दे देती है।

जैसे कि अनेक फैक्ट्री और टॉकीज सरकार द्वारा दी गई पट्टे के भवनों पर चल रहे हैं। सरकार ने उन्हें 100 वर्ष या 50 वर्ष के लिए वह संपत्ति एक पट्टा लिख कर दिया है। वे लोग उस संपत्ति के स्वामी नहीं है उन्होंने सरकार को एक निश्चित धनराशि 100 वर्ष या 50 वर्ष के लिए दी है उसके बाद उनका उस संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं है

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