जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते

 इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक निर्णय में कहा है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (डी) के अनुसार, जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते, इसके बजाय इसे शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए। न्यायमूर्ति सैयद आफताफ हुसैन रिजवी ने विमल दुबे और एक अन्य द्वारा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482  के अंतर्गत दायर याचिका को स्वीकार कर ये निर्णय दिया। आवेदकों के अधिवक्ता ने मुख्य रूप से तर्क दिया कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 323 और 504 के अंतर्गत एक एनसीआर पंजीकृत किया गया था और उसके बाद जांच की गई और आवेदकों के विरुद्ध आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया।  यह तर्क दिया गया कि मजिस्ट्रेट ने पुलिस रिपोर्ट को देखे बिना और कानून के प्रावधानों के खिलाफ अपराध का संज्ञान लिया, क्योंकि धारा 2 (डी) सीआरपीसी के अनुसार, यदि जांच के बाद पुलिस रिपोर्ट में असंज्ञेय अपराध का खुलासा होता है, तो यह शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए और जांच अधिकारी/पुलिस अधिकारी को शिकायतकर्ता माना जाएगा और शिकायत मामले की प्रक्रिया का पालन किया जाना है। धारा 2(डी) सीआरपीसी के प्रावध

इलाहाबाद उच्च न्यायालय का लेखपालों की पैंशन पर महत्वपूर्ण निर्णय

उच्च न्यायालय इलाहाबाद में दायर याचिका पर याची लेखपाल संघ की ओर से तर्क दिया गया कि उनका चयन एवं प्रशिक्षण सत्र 2003-04 में अगस्त 2004 में प्रशिक्षण पूरा हो गया था। इस आधार पर याचिकाकर्ताओं ने अपने वेतन से हो रही कटौती को पुरानी पेंशन योजना  के अंतर्गत करने की मांग की थी। 

विस्तार
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक अप्रैल 2005 के पहले चयनित लेखपालों को पुरानी पेंशन योजना बहाल कर दी है। इसके साथ ही मामले में सरकार से जवाब तलब भी किया है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यूपी लेखपाल संघ के कोषाध्यक्ष विनोद कुमार कश्यप की याचिका पर अंतरिम आदेश जारी करते हुए अप्रैल 2005 से पहले चयनित लेखपालों की पेंशन पुरानी पेंशन योजना  के अंतर्गत वेतन से कटौती करने को कहा है। याचिका पर न्यायमूर्ति सरल श्रीवास्तव की एकल खंडपीठ सुनवाई कर रही है।


         याची लेखपाल संघ की ओर से तर्क दिया गया कि उनका चयन एवं प्रशिक्षण सत्र 2003-04 में अगस्त 2004 में प्रशिक्षण पूरा हो गया था। इस आधार पर याचिकाकर्ताओं ने अपने वेतन से हो रही कटौती को पुरानी पेंशन योजना  के अंतर्गत करने की मांग की थी। याची के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट के समक्ष इसी तरह का मामला प्रमोद कुमार श्रीवास्तव व अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य 2015 में आया था।

    उच्च न्यायालय ने याची को पुरानी पेंशन का लाभ दिए जाने का आदेश दिया था। याची के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि क्योंकि, याची की चयन प्रक्रिया एक अप्रैल 2005 से पहले शुरू हुई और पूरी हो गई। इसलिए याची पुरानी पेंशन योजना का लाभ पाने का हकदार है। इस पर कोर्ट ने अंतरिम राहत प्रदान करते हुए मामले में सरकार से छह हफ्ते में जवाब मांगा है।

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