जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते

 इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक निर्णय में कहा है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (डी) के अनुसार, जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते, इसके बजाय इसे शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए। न्यायमूर्ति सैयद आफताफ हुसैन रिजवी ने विमल दुबे और एक अन्य द्वारा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482  के अंतर्गत दायर याचिका को स्वीकार कर ये निर्णय दिया। आवेदकों के अधिवक्ता ने मुख्य रूप से तर्क दिया कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 323 और 504 के अंतर्गत एक एनसीआर पंजीकृत किया गया था और उसके बाद जांच की गई और आवेदकों के विरुद्ध आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया।  यह तर्क दिया गया कि मजिस्ट्रेट ने पुलिस रिपोर्ट को देखे बिना और कानून के प्रावधानों के खिलाफ अपराध का संज्ञान लिया, क्योंकि धारा 2 (डी) सीआरपीसी के अनुसार, यदि जांच के बाद पुलिस रिपोर्ट में असंज्ञेय अपराध का खुलासा होता है, तो यह शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए और जांच अधिकारी/पुलिस अधिकारी को शिकायतकर्ता माना जाएगा और शिकायत मामले की प्रक्रिया का पालन किया जाना है। धारा 2(डी) सीआरपीसी के प्रावध

क्या लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के लिए विवाह योग्य उम्र होना आवश्यक है।

   लिव-इन रिलेशनशिप में एक युवा जोड़े की सुरक्षा की माँग करने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने मंगलवार को फैसला दिया है कि यह तथ्य कि वयस्क लड़का विवाह योग्य उम्र का नहीं है, युवा जोड़े को अनुच्छेद 21 के तहत उनके मौलिक अधिकार से वंचित नहीं करता है।

   न्यायमूर्ति हरनरेश सिंह गिल संविधान के अनुच्छेद 226 के अंतर्गत दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई कर रहे थे जिसमें याचिकाकर्ताओं ने अपने माता-पिता से पुलिस सुरक्षा की मांग की, जिन्होंने उनके लिव-इन रिलेशनशिप पर आपत्ति जताई थी।

  याचिकाकर्ता नंबर २ लड़का बालिग होने के बावजूद अभी विवाह योग्य उम्र तक नहीं पहुंचा था, जिस कारण दंपति के माता-पिता ने उन्हें धमकी दी थी।

    उच्च न्यायालय ने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, गुरदासपुर को निर्देश दिया कि यदि जीवन या स्वतंत्रता के लिए कोई खतरा महसूस होता है तो दंपति को सुरक्षा प्रदान करें।

            याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता लगातार खतरे में हैं क्योंकि उन्हें डर है कि उनके माता-पिता उनकी धमकियों को अंजाम दे सकते हैं और यहां तक ​​कि उनकी हत्या भी कर सकते हैं। याचिका में यह भी दावा किया कि याचिकाकर्ता अपने जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए दर-दर भटक रहे हैं।

   उच्च न्यायालय ने नंदकुमार और अन्य बनाम केरल राज्य में उच्चतम न्यायालय के फैसले का भी हवाला दिया , जहां सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि भले ही लड़का विवाह में प्रवेश करने के लिए सक्षम नहीं है, फिर भी उन्हें विवाह के बाहर भी साथ रहने का अधिकार है। उच्चतम न्यायालय ने इस तथ्य पर भी विचार किया कि “लिव-इन रिलेशनशिप” शब्द को अब विधायिका द्वारा मान्यता प्राप्त है।

    परिणामत:, न्यायालय ने याचिका को खारिज करते हुए, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, गुरदासपुर को निर्देश दिया कि वे याचिकाकर्ताओं के प्रतिनिधित्व पर कानून के अनुसार निर्णय लें और उन्हें सुरक्षा प्रदान करें।

केस का शीर्षक: सपना और अन्य बनाम पंजाब राज्य

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