जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते

 इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक निर्णय में कहा है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (डी) के अनुसार, जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते, इसके बजाय इसे शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए। न्यायमूर्ति सैयद आफताफ हुसैन रिजवी ने विमल दुबे और एक अन्य द्वारा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482  के अंतर्गत दायर याचिका को स्वीकार कर ये निर्णय दिया। आवेदकों के अधिवक्ता ने मुख्य रूप से तर्क दिया कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 323 और 504 के अंतर्गत एक एनसीआर पंजीकृत किया गया था और उसके बाद जांच की गई और आवेदकों के विरुद्ध आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया।  यह तर्क दिया गया कि मजिस्ट्रेट ने पुलिस रिपोर्ट को देखे बिना और कानून के प्रावधानों के खिलाफ अपराध का संज्ञान लिया, क्योंकि धारा 2 (डी) सीआरपीसी के अनुसार, यदि जांच के बाद पुलिस रिपोर्ट में असंज्ञेय अपराध का खुलासा होता है, तो यह शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए और जांच अधिकारी/पुलिस अधिकारी को शिकायतकर्ता माना जाएगा और शिकायत मामले की प्रक्रिया का पालन किया जाना है। धारा 2(डी) सीआरपीसी के प्रावध

 क्या  मुस्लिम लड़की 18 वर्ष से कम आयु में अपनी मर्ज़ी से शादी कर सकती है

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने पुलिस को एक 17 वर्षीय मुस्लिम लड़की की सुरक्षा देने का आदेश दिया है, जिसने अपने परिवार और रिश्तेदारों की इच्छा के विरुद्ध एक हिंदू लड़के से शादी की थी।


अपने आदेश में न्यायालय ने कहा कि क्योंकि वह एक मुस्लिम लड़की है वह युवावस्था में पहुंचने के बाद किसी से भी शादी करने के लिए स्वतंत्र थी, जिसका अर्थ है कि देश के कानून द्वारा निर्धारित न्यूनतम शादी की उम्र मुसलमानों पर लागू नहीं होती है। न्यायालय ने कहा कि परिवार को हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है।


न्यायमूर्ति हरनरेश सिंह गिल ने कहा, “कानून स्पष्ट है कि मुस्लिम लड़की की शादी मुस्लिम पर्सनल लॉ द्वारा शासित होती है।” सर दिनशाह फरदुनजी मुल्ला द्वारा ‘मोहम्मडन कानून के सिद्धांत’ पुस्तक के अनुच्छेद 195 के अनुसार , मुस्लिम लड़की याची संख्या 1, 17 वर्ष की आयु में, अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ विवाह अनुबंध में प्रवेश करने के लिए सक्षम है। उसके साथी की उम्र 33 साल के आसपास बताई जा रही है। नतीजतन, याचिकाकर्ता नंबर 1 मुस्लिम पर्सनल लॉ के अंतर्गत विवाह योग्य उम्र का है

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