जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते

 इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक निर्णय में कहा है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (डी) के अनुसार, जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते, इसके बजाय इसे शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए। न्यायमूर्ति सैयद आफताफ हुसैन रिजवी ने विमल दुबे और एक अन्य द्वारा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482  के अंतर्गत दायर याचिका को स्वीकार कर ये निर्णय दिया। आवेदकों के अधिवक्ता ने मुख्य रूप से तर्क दिया कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 323 और 504 के अंतर्गत एक एनसीआर पंजीकृत किया गया था और उसके बाद जांच की गई और आवेदकों के विरुद्ध आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया।  यह तर्क दिया गया कि मजिस्ट्रेट ने पुलिस रिपोर्ट को देखे बिना और कानून के प्रावधानों के खिलाफ अपराध का संज्ञान लिया, क्योंकि धारा 2 (डी) सीआरपीसी के अनुसार, यदि जांच के बाद पुलिस रिपोर्ट में असंज्ञेय अपराध का खुलासा होता है, तो यह शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए और जांच अधिकारी/पुलिस अधिकारी को शिकायतकर्ता माना जाएगा और शिकायत मामले की प्रक्रिया का पालन किया जाना है। धारा 2(डी) सीआरपीसी के प्रावध

अभियुक्त की आयु का निर्धारण करने के लिए क्या हाई स्कूल प्रमाण-पत्र मान्य सबूत है।is the certificate of high school sufficient evidence to decide the age of juvenile.

     इलाहाबाद उच्च न्यायालय  ने कहा कि आरोपी की आयु  का निर्धारण किशोर न्याय कानून  के अंतर्गत ही किया जाएगा। किशोर न्याय कानून के तहत हाई स्कूल प्रमाण-पत्र आयु निर्धारण के लिए मान्य सबूत है। ऐसे में जब हाई स्कूल प्रमाणपत्र मौजूद हो तो अन्य साक्ष्य  की आवश्यकता नहीं है।

      आयु निर्धारण को लेकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने दिनांक 16/12/2021 को एक महत्वपूर्ण फैसला किया। न्यायालय ने कहा अपराध के आरोपी की आयु का निर्धारण किशोर न्याय कानून के अंतर्गत ही किया जाएगा. किशोर न्याय कानून के अंतर्गत हाई स्कूल प्रमाणपत्र आयु निर्धारण के लिए मान्य सबूत है। ऐसे में जब हाई स्कूल प्रमाणपत्र मौजूद हो तो अन्य साक्ष्य की आवश्यकता नहीं होगी। कोर्ट ने प्राथमिक विद्यालय के रजिस्टर की प्रविष्टि के आधार पर आयु निर्धारण न करने के आदेश को सही माना। उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के आदेश को वैध करार दिया।
         सुरेंद्र सिंह की ओर से दाखिल पुनरीक्षण याचिका को न्यायालय ने खारिज करते हुए यह बात कही। याचिका में अतिरिक्त जिला जज जालौन उरई के विपक्षी रामू सिंह को किशोर ठहराने के आदेश को चुनौती दी गई थी। शिकायत कर्ता के पुत्र की हत्या के आरोप में 20 मार्च 2015 को एफआईआर दर्ज कराई गई थी। 16 अक्टूबर 2015 को 8 अभियुक्तों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई थी. विपक्षी रामू सिंह ने हाई स्कूल प्रमाणपत्र के आधार पर स्वयं को किशोर घोषित करने की मांग में अर्जी दी थी। याची की तरफ से विरोध किया गया था कि हाई स्कूल प्रमाणपत्र में विपक्षी की जन्म तिथि 4 मई 1997 दर्ज है। इसके अनुसार घटना के समय विपक्षी की आयु 17 वर्ष 10 माह 15 दिन है। याची ने प्राथमिक विद्यालय के रजिस्टर के आधार पर विपक्षी की जन्म तिथि 3 जुलाई 1996 होने के आधार पर आयु 21वर्ष होने के कारण आपत्ति दर्ज की थी।

 इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा - हाई स्कूल प्रमाणपत्र किसी आरोपी या अपराधी की उम्र तय करने के लिए मान्य सबूत है।

      विपक्षी की  बात को मानते हुए  न्यायालय ने अर्जी मंजूर कर ली थी और विपक्षी को किशोर घोषित किया था। इसे पुनरीक्षण याचिका में चुनौती दी गई थी। इस पर कोर्ट ने कहा कि अपराध के आरोपी की आयु का निर्धारण किशोर न्याय कानून के तहत ही किया जाएगा। जस्टिस संजय कुमार सिंह की एकल पीठ ने दिया यह आदेश ।

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