जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते

 इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक निर्णय में कहा है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (डी) के अनुसार, जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते, इसके बजाय इसे शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए। न्यायमूर्ति सैयद आफताफ हुसैन रिजवी ने विमल दुबे और एक अन्य द्वारा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482  के अंतर्गत दायर याचिका को स्वीकार कर ये निर्णय दिया। आवेदकों के अधिवक्ता ने मुख्य रूप से तर्क दिया कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 323 और 504 के अंतर्गत एक एनसीआर पंजीकृत किया गया था और उसके बाद जांच की गई और आवेदकों के विरुद्ध आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया।  यह तर्क दिया गया कि मजिस्ट्रेट ने पुलिस रिपोर्ट को देखे बिना और कानून के प्रावधानों के खिलाफ अपराध का संज्ञान लिया, क्योंकि धारा 2 (डी) सीआरपीसी के अनुसार, यदि जांच के बाद पुलिस रिपोर्ट में असंज्ञेय अपराध का खुलासा होता है, तो यह शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए और जांच अधिकारी/पुलिस अधिकारी को शिकायतकर्ता माना जाएगा और शिकायत मामले की प्रक्रिया का पालन किया जाना है। धारा 2(डी) सीआरपीसी के प्रावध

क्या बहू का अधिकार परिवार में बेटी से अधिक है।is the right of wife greater than daughter in family

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली में नई व्यवस्था बनाते हुए बहू को भी परिवार की श्रेणी में रखने काआदेश दिया है। इसके साथ ही सरकार से पांच अगस्त 2019 के आदेश में बदलाव करने का निर्देश दिया है। उच्च न्यायालय ने कहा कि परिवार में बेटी से ज्यादा बहू का अधिकार है।

लेकिन, उत्तर प्रदेश आवश्यक वस्तु (वितरण के विनियम का नियंत्रण) आदेश 2016 में बहू को परिवार की श्रेणी में नहीं रखा गया है और इसी आधार पर उसने (प्रदेश सरकार) 2019 का आदेश जारी किया है, जिसमें बहू को परिवार की श्रेणी में नहीं रखा गया है। इस वजह से बहू को उसके अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता है। परिवार में बहू का अधिकार बेटी से अधिक है। फिर बहू चाहे विधवा हो या न हो। वह भी बेटी (विधवा हो या तलाकशुदा) की तरह ही परिवार का हिस्सा है।

         उच्च न्यायालय ने अपने इस आदेश में उत्तर प्रदेश पॉवर कॉरपोरेशन लिमिटेड (सुपरा), सुधा जैन बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, गीता श्रीवास्तव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के केस का हवाला भी दिया और याची पुष्पा देवी के आवेदन को स्वीकार करने का निर्देश देते हुए उसके नाम से राशन की दुकान का आवंटन करने का निर्देश दिया है।

     याची पुष्पा देवी ने उच्च न्यायालय के समक्ष आवेदन किया है कि वह विधवा है। उसकी सास महदेवी देवी जिनके नाम राशन की दुकान आवंटित थी। 11 अप्रैल 2021 को उसकी सास की मृत्यु हो गई। इससे उसके जीवन-यापन का संकट खड़ा हो गया। वह और उसके दोनों बच्चे पूरी तरह से उसकी सास पर निर्भर थे।

       सास के मरने के बाद उसके परिवार में ऐसा कोई सदस्य नहीं बचा, जिसके नाम से राशन की दुकान आवंटित की जा सके। लिहाजा, वह अपनी सास की विधिक उत्तराधिकारी है और उसके नाम से राशन की दुकान का आवंटन किया जाए।

      याची ने राशन की दुकान के आवंटन के संबंध में संबंधित प्राधिकारी को प्रत्यावेदन दिया था। लेकिन, प्राधिकारी ने यह कहकर उसका प्रत्यावेदन निरस्त कर दिया कि उत्तर प्रदेश सरकार के पांच अगस्त 2019 के आदेश के तहत बहू या विधवा बहू को परिवार की श्रेणी में नहीं रखा गया है। लिहाजा, बहू को राशन की दुकान का आवंटन नहीं किया जा सकता है। याची ने इस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।जिसकी सुनवाई करने के बाद उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने उक्त निर्णय किया है कि बहू भी परिवार की सदस्य हैं और उसका स्थान बेटी से पहले आता है। और सरकार को भी आदेशित किया है कि इस नियम में बदलाव किया जाये।  

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