जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते

 इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक निर्णय में कहा है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (डी) के अनुसार, जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते, इसके बजाय इसे शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए। न्यायमूर्ति सैयद आफताफ हुसैन रिजवी ने विमल दुबे और एक अन्य द्वारा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482  के अंतर्गत दायर याचिका को स्वीकार कर ये निर्णय दिया। आवेदकों के अधिवक्ता ने मुख्य रूप से तर्क दिया कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 323 और 504 के अंतर्गत एक एनसीआर पंजीकृत किया गया था और उसके बाद जांच की गई और आवेदकों के विरुद्ध आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया।  यह तर्क दिया गया कि मजिस्ट्रेट ने पुलिस रिपोर्ट को देखे बिना और कानून के प्रावधानों के खिलाफ अपराध का संज्ञान लिया, क्योंकि धारा 2 (डी) सीआरपीसी के अनुसार, यदि जांच के बाद पुलिस रिपोर्ट में असंज्ञेय अपराध का खुलासा होता है, तो यह शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए और जांच अधिकारी/पुलिस अधिकारी को शिकायतकर्ता माना जाएगा और शिकायत मामले की प्रक्रिया का पालन किया जाना है। धारा 2(डी) सीआरपीसी के प्रावध

उच्चतम न्यायालय ने पुनः परिसीमा अवधि बढ़ाने के आदेश दिए

 उच्चतम न्यायालय ने पुनः परिसीमा अवधि बढ़ाने के आदेश दिए; दिनांक15.03.2020 से 28.02.2022 तक की अवधि को परिसीमा से बाहर रखा है।

भारतीय उच्चतम न्यायालय


उच्चतम न्यायालय ने देश में कोविड-19 के बढ़ते मामलों पर विचार करते हुए न्यायालयों और न्यायाधिकरणों में सभी प्रकार के मामलों को संस्थित करने की परिसीमा अवधि को आगे बढ़ाने का आदेश दिया है।

उच्चतम न्यायालय ने आदेश में कहा

"दिनांक 23.03.2020 के आदेश को बहाल किया जाता है। साथ ही बाद के आदेश दिनांक 08.03.2021, 27.04.2021 और 23.09.2021 की निरंतरता में यह निर्देश दिया जाता है कि सभी न्यायिक या अर्ध-न्यायिक कार्यवाही के संबंध में किसी भी सामान्य या विशेष कानूनों के अंतर्गत निर्धारित परिसीमा 15.03.2020 से 28.02.2022 तक की अवधि को निम्नलिखित के प्रयोजनों के लिए परिसीमा से बाहर रखा जाएगा।"


आगे के निर्देश इस प्रकार हैं,


2. नतीजतन, 03.10.2021 को शेष परिसीमा अवधि, यदि कोई हो, 01.03.2022 से उपलब्ध हो जाएगी।

3. ऐसे मामलों में जहां परिसीमा 15.03.2020 से 28.02.2022 के बीच की अवधि के दौरान समाप्त हो गई होगी, शेष परिसीमा की वास्तविक शेष अवधि के बावजूद, सभी व्यक्तियों की 01.03.2022 से 90 दिनों की परिसीमा अवधि होगी। यदि 01.03.2022 से प्रभावी परिसीमा की वास्तविक शेष अवधि 90 दिनों से अधिक है, तो वह लंबी अवधि लागू होगी।


4. यह आगे स्पष्ट किया जाता है कि 15.03.2020 से 28.02.2022 तक की अवधि को भी मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 23 (4) और 29ए, वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम,2015 की धारा 12ए और नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 की धारा 138 के प्रावधान (बी) और (सी) और कोई अन्य कानून, जो कार्यवाही शुरू करने के लिए सीमा की अवधि (अवधि) निर्धारित करते हैं, के अंतर्गत निर्धारित अवधि की गणना में शामिल नहीं किया जाएगा।

भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमाना, न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति सूर्य कांत की बैंच ने सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसियेशन द्वारा संस्थित एक आवेदन के अंतर्गत स्वत: संज्ञान के मामले में परिसीमा अवधि बढ़ाने के अनुरोध को स्वीकार किया।


सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन ने देश में कोविड-19 मामलों की बढ़ती संख्या के बीच वर्तमान स्थिति को देखते हुए न्यायिक और अर्ध-न्यायिक कार्यवाहियों के संबंध में वैधानिक परिसीमा अवधि को बढ़ाने की मांग करते हुए उच्चतम न्यायालय के समक्ष एक आवेदन संस्थित किया था।


भारत के महान्यायवादी केके वेणुगोपाल ने भी सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन की याचिका का समर्थन किया।

23 मार्च, २०२० को उच्चतम न्यायालय ने कोविड-19 की स्थिति का स्वत: संज्ञान लेने के बाद पहली बार परिसीमा अवधि बढ़ाने का आदेश दिया था।


उच्चतम न्यायालय ने दिनांक 8 मार्च, 2021 को, दिनांक 14.03.2021 से परिसीमा अवधि विस्तार को समाप्त कर दिया था, यह देखते हुए कि कोविड-19 की स्थिति में सुधार हुआ है।

हालांकि, अप्रैल 2021 में कोविड-19 की दूसरी लहर के सामने आदेशों को पुन: बहाल किया गया था। इसे 2 अक्टूबर, 2021 से  23 सितंबर 2021के आदेश द्वारा वापस ले लिया गया था।

परिसीमा अवधि बढ़ाने का क्रम


23.03.2020 : उच्चतम न्यायालय ने अगले आदेश तक परिसीमा अवधि 15.03.2020 से बढ़ा दी।

०८.०३.२०११: उच्चतम न्यायालय ने 15.03.2021 से परिसीमा अवधि बढ़ाने के आदेश को वापस लिया; 15.03.2020 से 14.03.2021 तक की अवधि को परिसीमा से बाहर रखा गया।

27.04.2021 : उच्चतम न्यायालय ने 23.03.2020 के आदेश को बहाल करके परिसीमा अवधि बढ़ाई; 14.03.2021 की अवधि को अगले आदेश तक परिसीमा से बाहर रखा गया है।

23.09.2021 : उच्चतम न्यायालय ने 02.10.2021 से परिसीमा विस्तार को वापस लिया; 15.03.2020 से 02.10.2021 तक की अवधि को परिसीमा से बाहर रखा गया।

10.01.2022 : उच्चतम न्यायालय ने परिसीमा विस्तार को बहाल किया; 15.03.2020 से 28.02.2022 तक की अवधि को परिसीमा से बाहर रखा गया।

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