पत्नी के माता-पिता वैवाहिक विवाद में मध्यस्थता केंद्र पर केवल पति द्वारा जमा की गई राशि प्राप्त करने आते हैं: इलाहाबाद उच्च न्यायालय
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इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि पत्नी के माता-पिता वैवाहिक विवादों को निपटाने के लिए केवल पति/आवेदक द्वारा जमा की गई राशि प्राप्त करने के लिए मध्यस्था केंद्र से संपर्क करते हैं और उच्च न्यायालय ने ऐसे माता-पिता की इस आदत पर नाराजगी व्यक्त की है।
इस मामले के आरोपी पति फ़राज़ हसन ने दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3 और 4 और भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498 ए, 308, 323 के अंतर्गत दर्ज मामले में गिरफ्तारी से पहले जमानत की मांग करते हुए उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि चूंकि मामला एक वैवाहिक विवाद है, इसलिए इसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मध्यस्थता केंद्र के समक्ष भेजा जाना चाहिए।
पीठ ने याची के तर्कों से सहमति रखते हुए मामले को मध्यस्थता के लिए मध्यस्थता केंद्र भेज दिया। न्यायालय ने आवेदक पति को 50000 रुपये मध्यस्थता केंद्र में जमा करने का निर्देश दिया और कहा कि यह राशि मध्यस्थता प्रक्रिया समाप्त होने के बाद ही पत्नी को दी जाएगी।
उच्च न्यायालय ने देखा कि पक्षकार पूर्व नियोजित योजना के साथ मध्यस्थता के लिए आ रहे हैं न्यायालय ने पति/आवेदक द्वारा जमा की गई राशि प्राप्त करने के लिए ने निम्नलिखित दिशानिर्देश जारी किए जिनका पक्षकार पालन करेंगे
1. यदि पत्नी के माता-पिता केवल एक तारीख को मध्यस्थता केंद्र पर आते हैं और कहते हैं कि उन्हें कोई दिलचस्पी नहीं है या यदि वे बिना उचित कारण के पिछली तारीखों में शामिल नहीं हुए हैं, तो उन्हें जमा की गई राशि का केवल 50% मिलेगा और बाकी पति को वापस जाएगा।
२. यदि पक्षकार दो बार से अधिक मध्यस्थता में आते हैं तो उन्हें पूरी राशि मिलेगी।
3. यदि पत्नी और उसके माता-पिता को नोटिस मिलने के बावजूद वे मध्यस्थता केंद्र पर उपस्थित नहीं होते हैं, तो पूरी राशि पति/आवेदक को वापस कर दी जाएगी।
4. यदि आवेदक/पति रकम जमा नहीं करता है या रकम जमा करने के बाद मध्यस्थता में भाग लेने में विफल रहता है, तो राशि को मध्यस्थता केंद्र के खाते में जमा किया जाएगा और संबंधित न्यायालय को प्रेषित किया जाएगा।
इस प्रकार पीठ ने मामले को मध्यस्थता केंद्र को वापस भेज दिया और यह निर्देश दिया कि आवेदक के विरुद्ध कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए।
शीर्षक: फ़राज़ हसन बनाम द स्टेट ऑफ़ उत्तर प्रदेश
विविध अग्रिम जमानत संख्या 20423 सन 2021
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