हिन्दू विवाह की आवश्यक शर्तें / Essential conditions for Hindu Marriage
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हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 5 हिन्दू विवाह के लिए निम्नलिखित शर्त निर्धारित करती है -----
(1) एक विवाह - अधिनियम की धारा 5(1) यह निर्धारित करती है कि विवाह के समय दोनों पक्षकारों में से, न तो वर की कोई जीवित पत्नी होनी चाहिए और न वधू का कोई जीवित पति होना चाहिए।
परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि विवाह के समय वर वधू कुँवारे हों। वे अविवाहित, विधवा या विधुर और तलाकशुदा हो सकते हैं।
द्वितीय विवाह और धर्म परिवर्तन -- धर्म परिवर्तन से विवाह समाप्त नहीं होता बल्कि दूसरे पक्षकार को विवाह समाप्त करने का अधिकार प्राप्त होता है।
बहु विवाह की प्रथा एवं रुढि --- उच्चतम न्यायालय ने डाक्टर सूरजमणि बनाम दुर्गाचरण हंसदा, ए आई आर 2001 में यह अभिनिर्धारण किया कि अनुसूचित जनजाति में प्रथा एवं रीति रिवाज के अन्तर्गत बहुविवाह को मान्यता प्रदान की गई है, तो ऐसी स्थिति में रूढि एवं प्रथा सर्वोच्च होगी।
भारत से बाहर सम्पन्न विवाह --- पति के पहले की एक पत्नी थी तथा पहली शादी 1955 से पहले इंग्लैंड में सम्पन्न हुई थी यदि पहले की पत्नी के जीवन काल में पति दूसरा विवाह करता है तो ऐसा विवाह शून्य एवं अकृत होगा भले ही विवाह संसार के किसी कोने में किया गया है। क्योंकि प्रत्येक हिन्दू पर हिन्दू विधि लागू होता है चाहे वह कहीं निवास करे।
शर्त के उल्लंघन पर परिणाम -- धारा 11 के अनुसार, यदि विवाह के समय दोनों पक्षकारों में से किसी का पूर्व पति या पत्नी जीवित है तो ऐसा विवाह शून्य एवं अकृत होगा।
दण्ड --- द्विविवाह करने वाला पक्षकार भारतीय दण्ड संहिता की धारा 494,495 के अन्तर्गत दण्डित किया जायेगा।
(2) मानसिक रूप से अस्वस्थ न होना --- विवाह की दूसरी शर्त है कि विवाह के पक्षकार मानसिक रूप से स्वस्थ हों। अर्थात (क) चित्त विकृति के कारण विधिमान्य सम्मति देने में असमर्थ न हो (ख) सन्तानोत्पत्ति के लिए अयोग्य न हो।
(ग) उन्मत्तता के दौरे से पीडित न हो।
शर्त के उल्लंघन पर परिणाम -- जब विवाह के समय कोई पक्षकार उपर्युक्त तरीकों में से किसी भी प्रकार से पीडित रहा हो तो विवाह का दूसरा पक्षकार न्यायालय में आवेदन कर धारा 12 के अधीन विवाह को शून्यकरणीय घोषित करा सकेगा।
(3) आयु -- धारा 5(3) के अनुसार विवाह के समय वर की आयु 21 वर्ष तथा वधू की आयु 18 वर्ष पूरी होनी चाहिए।
शर्त के उल्लंघन का परिणाम -- इस शर्त के उल्लंघन में किया गया विवाह वैध होता है। केवल विवाह कराने वाले व्यक्ति दण्डित किये जा सकते हैं।
(4) प्रतिषिद्ध नातेदारी के अन्तर्गत विवाह न होना --
प्रतिषिद्ध नातेदारी में आने वाले पक्षकारों के मध्य सम्पन्न विवाह शून्य एवं अकृत होगा।
(5) विवाह के पक्षकारों का सपिण्ड न होना -- यदि विवाह के पक्षकार सपिण्ड है तो उनके बीच सम्पन्न विवाह शून्य एवं अकृत होगा।
परन्तु दोनों पक्षकारों की रुढि या प्रथा ऐसे विवाह को मान्यता देती है तो विवाह वैध होगा।
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