जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते

 इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक निर्णय में कहा है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (डी) के अनुसार, जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते, इसके बजाय इसे शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए। न्यायमूर्ति सैयद आफताफ हुसैन रिजवी ने विमल दुबे और एक अन्य द्वारा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482  के अंतर्गत दायर याचिका को स्वीकार कर ये निर्णय दिया। आवेदकों के अधिवक्ता ने मुख्य रूप से तर्क दिया कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 323 और 504 के अंतर्गत एक एनसीआर पंजीकृत किया गया था और उसके बाद जांच की गई और आवेदकों के विरुद्ध आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया।  यह तर्क दिया गया कि मजिस्ट्रेट ने पुलिस रिपोर्ट को देखे बिना और कानून के प्रावधानों के खिलाफ अपराध का संज्ञान लिया, क्योंकि धारा 2 (डी) सीआरपीसी के अनुसार, यदि जांच के बाद पुलिस रिपोर्ट में असंज्ञेय अपराध का खुलासा होता है, तो यह शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए और जांच अधिकारी/पुलिस अधिकारी को शिकायतकर्ता माना जाएगा और शिकायत मामले की प्रक्रिया का पालन किया जाना है। धारा 2(डी) सीआरपीसी के प्रावध

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कर्नाटक हाईकोर्ट ने मंगलवार को राज्य सरकार और पुलिस से पूछा कि कानून के किन प्रावधानों के तहत 16 मस्जिदों को लाउडस्पीकर और पब्लिक एड्रेस सिस्टम के उपयोग की अनुमति दी गई है और इस तरह के उपयोग को प्रतिबंधित करने के लिए ध्वनि प्रदूषण नियम के तहत क्या कार्रवाई की जा रही है।
चीफ ज‌स्टिस रितु राज अवस्थी और जस्टिस सचिन शंकर मखदूम ने आदेश में कहा, "प्रतिवादी राज्य के अधिकारियों को यह बताना होगा कि कानून के किन प्रावधानों के तहत, लाउडस्पीकर और पब्लिक एड्रेस सिस्टम के उपयोग को प्रतिवादियों ने 10 से 26 मस्जिदों में उपयोग की अनुमति दी है और उपयोग को प्रतिबंधित करने के लिए ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम, 2000 के अनुसार क्या कार्रवाई की जा रही है।"

याचिकाकर्ता राकेश पी और अन्य की ओर से पेश अधिवक्ता श्रीधर प्रभु ने कहा कि 2000 के नियमों के नियम 5 (3) के तहत लाउडस्पीकर और पब्लिक एड्रेस सिस्टम के उपयोग की अनुमति स्थायी रूप से नहीं दी जा सकती है।
नियम 5(3) के तहत लाउड स्पीकर/पब्लिक एड्रेस सिस्टम (और ध्वनि उत्पन्न करने वाले उपकरणों) के उपयोग को प्रतिबंधित किया गया है। यह राज्य सरकार को सीमित अवधि के लिए किसी भी सांस्कृतिक, धार्मिक या उत्सव के के लिए रात के 10.00 बजे से 12.00 बजे बीच के बीच लाउड स्पीकर और अन्य ध्वनि उपकरण के उपयोग की अनुमति देने के लिए अधिकृत करता है, हालांकि यह एक कैलेंडर वर्ष में पंद्रह दिनों से अधिक न हो।

इसके अलावा वकील ने कहा कि कर्नाटक वक्फ बोर्ड, जिसने सर्कुलर जारी किया था, जिसके आधार पर उत्तरदाताओं ने लाउडस्पीकर लगाए थे, अनुमति देने के लिए सक्षम प्राधिकारी नहीं है।
प्रतिवादियों (मस्जिदों) के वकील ने याचिका का विरोध किया और कहा कि पुलिस से उचित अनुमति प्राप्त कर ली गई है। लाउडस्पीकर में एक ऐसा उपकरण लगा है, जो ध्वनि को अनुमेय सीमा से आगे नहीं जाने देता है। अधिनियम के तहत प्रतिबंधित समय अवधि रात 10 बजे से सुबह 6 बजे के बीच लाउडस्पीकर का भी उपयोग नहीं किया जा रहा है।

वाहनों और नाइट क्लबों से पैदा हो रहे ध्वनि प्रदूषण का स्वत: संज्ञान

अदालत ने दो पहिया और चार पहिया वाहनों में लगे संशोधित/प्रवर्धित साइलेंसर से पैदा हो रहे ध्वनि प्रदूषण का भी स्वत: संज्ञान लिया, जो मोटर वाहन अधिनियम के तहत निर्धारित मानक मानदंडों के अनुसार नहीं हैं।
पीठ ने मौखिक रूप से कहा, "यदि आप किसी अहम सड़क के पास रहते हैं तो आपको एहसास होगा कि इन वाहनों के कारण सड़क के पास रहना कितना मुश्किल है।"


अदालत ने राज्य सरकार और पुलिस को यह बताने का निर्देश दिया कि इस तरह के खतरे को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं और निर्देश दिया कि ऐसे वाहनों की पहचान करने के लिए एक अभियान चलाया जाना चाहिए और कार्रवाई की जानी चाहिए।
इसके अलावा, अदालत ने यह भी कहा कि, "राज्य प्राधिकरण ऐसे सभी नाइट क्लबों और संगठनों के संचालन पर भी विचार करें जो ध्वनि प्रदूषण नियम, 2000 का उल्लंघन कर रहे हैं। कार्रवाई की रिपोर्ट अगली तारीख को प्रस्तुत की जाए।"

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