क्या दहेज उत्पीड़न के मामले मे पति के परिवार के सदस्यों को आरोपी बनाया जा सकता है।
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दहेज उत्पीड़न के एक मामले में उच्चतम न्यायालय ने एक महिला और एक पुरुष के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी है। शीर्ष अदालत ने कहा कि वैवाहिक विवादों में बार-बार पति के परिवार के सदस्यों को प्रथम सूचना रिपोर्ट में यूं ही घसीटकर आरोपित बनाया जा रहा है।जोकि गलत है।
जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी और जस्टिस हृषिकेश राय की पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस आदेश को खारिज कर दिया जिसमें दहेज हत्या के मामले में आरोपित मृतका के देवर और सास को समर्पण करने और जमानत के लिए आवेदन करने का निर्देश दिया गया था।
शीर्ष न्यायालय ने कहा कि बड़ी संख्या में परिवार के सदस्यों को प्राथिमिकी में यूं ही नामों का उल्लेख करके प्रदर्शित किया गया है, जबकि विषय-वस्तु अपराध में उनकी सक्रिय भागीदारी को उजागर नहीं करती, इसलिए उनके खिलाफ मामले का संज्ञान लेना उचित नहीं था। यह भी कहा गया है कि इस तरह के मामलों में संज्ञान लेने से न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग होता है। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि मृतका के पिता द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत का अवलोकन करने से आरोपित की संलिप्तता को उजागर करने वाले किसी विशेष आरोप का संकेत नहीं मिलता।
मृतका के पिता ने 25 जुलाई, 2018 को गोरखपुर की कोतवाली में शिकायत दर्ज कराई थी कि उनकी छोटी बेटी का पति, देवर, ननद और सास दहेज में चार पहिया वाहन और 10 लाख रुपये की लगातार मांग कर रहे थे। मांगें पूरी नहीं होने पर 24 जुलाई, 2018 की रात आरोपियों ने बेटी को पीटा और उसके गले में फंदा डालकर हत्या कर दी और फिर लटका दिया।
उल्लेखनीय है कि हाल ही में उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दाखिल हुई थी। इसमें सर्वोच्च न्यायालय से निर्देश मांगा गया था कि शादी के रजिस्ट्रेशन से पहले प्री मैरिटल काउंसलिंग अनिवार्य कराई जाए। गैर सरकारी संस्था राष्ट्रीय बाल विकास परिषद की ओर से दाखिल याचिका में कहा गया था कि सर्वोच्च न्यायालय केंद्र सरकार को निर्देश दे कि वह ऐसी नीति बनाए जिससे शादी के पंजीकरण से पहले प्री मैरिटल काउंसलिंग को सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश अनिवार्य करें।
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