जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते

 इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक निर्णय में कहा है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (डी) के अनुसार, जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते, इसके बजाय इसे शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए। न्यायमूर्ति सैयद आफताफ हुसैन रिजवी ने विमल दुबे और एक अन्य द्वारा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482  के अंतर्गत दायर याचिका को स्वीकार कर ये निर्णय दिया। आवेदकों के अधिवक्ता ने मुख्य रूप से तर्क दिया कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 323 और 504 के अंतर्गत एक एनसीआर पंजीकृत किया गया था और उसके बाद जांच की गई और आवेदकों के विरुद्ध आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया।  यह तर्क दिया गया कि मजिस्ट्रेट ने पुलिस रिपोर्ट को देखे बिना और कानून के प्रावधानों के खिलाफ अपराध का संज्ञान लिया, क्योंकि धारा 2 (डी) सीआरपीसी के अनुसार, यदि जांच के बाद पुलिस रिपोर्ट में असंज्ञेय अपराध का खुलासा होता है, तो यह शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए और जांच अधिकारी/पुलिस अधिकारी को शिकायतकर्ता माना जाएगा और शिकायत मामले की प्रक्रिया का पालन किया जाना है। धारा 2(डी) सीआरपीसी के प्रावध

क्या भारतीय दण्ड संहिता की धारा 324 जमानतीय और शमनीय है

 भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 324 के अंतर्गत दंडनीय अपराध की प्रकृति के संबंध में आज भी यह भ्रम है कि क्या  धारा 324 के अंतर्गत दण्डनीय अपराध जमानतीय है या गैर-जमानतीय। शमनीय है या अशमनीय। इस लेख में प्रासंगिक वैधानिक उपबन्धो, विधिक संशोधनों, राजपत्र अधिसूचनाओं और न्यायशास्त्रीय विकास का विश्लेषण करते हुए उक्त भ्रम को दूर करने का प्रयास किया है।

भारतीय दंड संहिता,1860 की धारा ३२४

मूल रूप से आईपीसी की धारा ३२४ के प्रावधान निम्न है:

"आईपीसी की धारा 324: खतरनाक हथियारों से स्वेच्छा से चोट पहुंचाना। धारा 334 द्वारा प्रदान किए गए मामले को छोड़कर स्वेच्छा से गोली मारने, छुरा घोंपने, काटने से चोट का कारण बनता है, जो अपराध के हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इससे मृत्यु होने की संभावना है। इसमें किसी भी गर्म पदार्थ, जहर, संक्षारक पदार्थ, किसी विस्फोटक पदार्थ या किसी भी ऐसे पदार्थ से जो मानव शरीर को श्वास लेने, निगलने या रक्त प्रवाह में हानिकारक है, ऐसे अपराधी को तीन वर्ष अवधि के कारावास से दंडित किया जा सकता है। इसके साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है। अपराध की प्रकृति को देखते हैं दंड और जुर्माना दोनों भी लगाया जा सकता है।"


यह स्थापित करने के लिए कि अपराध एक जमानती अपराध है या नहीं, दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973  की पहली अनुसूची पर विचार करना आवश्यक है। इसमे भारतीय दण्ड संहिता की धारा 324 के अंतर्गत अपराध को मूल रूप से जमानतीय के रूप में दर्शित किया गया है। इसके अलावा, उप-धारा (1) के अंतर्गत तालिका और दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 320 की उप-धारा (२) की तालिका उन अपराधों को सूचीबद्ध करती है जिन्हें उक्त तालिकाओं के तीसरे कॉलम में निर्दिष्ट व्यक्ति द्वारा शमन किया जा सकता है। भारतीय दण्ड संहिता की धारा ३२४ के अंतर्गत अपराध को मूल रूप से शमनीय अपराधों की तालिका में दर्शित किया गया है। इस प्रकार, भारतीय दण्ड संहिता की धारा 324 के अंतर्गत दंडनीय अपराध को मूल अधिनियम में जमानतीय और शमनीय के रूप में दर्शित किया गया है।


दंड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम,2005

दण्ड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम, 2005 की धारा 28 (ए) ने भारतीय दण्ड संहिता की धारा 324 के अंतर्गत अपराध को "गैर-शमनीय" बना दिया और दण्ड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम, 2005 की धारा 42 (एफ) (iii) ने इस धारा 324 के अंतर्गत अपराध को "गैर-जमानतीय" बना दिया। दण्ड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम, 2005 को 23.06.2005 को अधिनियमित और प्रकाशित किया गया है। इसे राजकीय राजपत्र में एक अधिसूचना द्वारा केंद्र सरकार द्वारा नियत तारीख से ही प्रभावी किया जाना है।


  दण्ड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम 2005 के कुछ संशोधनों को संसद द्वारा 2 जून, 2006 से लागू किया गया लेकिन भारतीय दण्ड संहिता की धारा 324के संशोधन को लागू नहीं किया गया था।


दण्ड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम, 2005 की धारा 1 की उप-धारा 2 के संबंध में:

"(2) इस अधिनियम में अन्यथा प्रदान किए जाने के अलावा यह केंद्र सरकार द्वारा जारी आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना द्वारा तारीख को लागू होगा। इस अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के लिए अलग-अलग तिथियां नियत की जा सकती हैं।"


दण्ड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम, 2005 की धारा 1 की उप-धारा (2) द्वारा प्रदत्त शक्ति का प्रयोग करते हुए भारत के राजपत्र अधिसूचना दिनांक 21.06.2006 के अंतर्गत केंद्र सरकार ने 23 जून, 2006 को उक्त संशोधन के लागू होने की तारीख के रूप में नियत किया, जो धारा 28 (ए), ..., 42 (एफ) (iii), ... के प्रावधानों को छोड़कर दण्ड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम, 2005 के प्रावधान लागू होंगे। क्योंकि दण्ड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम, 2005 की धारा 28 (ए) और 42 (एफ) (iii) ने भारतीय दण्ड संहिता की धारा 324 के अंतर्गत दण्डनीय अपराध को क्रमश अशमनीय और अजमानतीय वनाया था लेकिन अभी तक इसे लागू नहीं किया गया है। इसलिए, भारतीय दण्ड संहिता की धारा 324 के अंतर्गत अपराध एक जमानतीय और शमनीय के रूप में जारी है, जैसा कि मूल रूप में था।

उक्त कारण से भारतीय दण्ड संहिता की धारा 324 के अंतर्गत दण्डनीय अपराध आज भी जमानतीय और शमनीय बना हुआ है।

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