जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते

 इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक निर्णय में कहा है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (डी) के अनुसार, जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते, इसके बजाय इसे शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए। न्यायमूर्ति सैयद आफताफ हुसैन रिजवी ने विमल दुबे और एक अन्य द्वारा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482  के अंतर्गत दायर याचिका को स्वीकार कर ये निर्णय दिया। आवेदकों के अधिवक्ता ने मुख्य रूप से तर्क दिया कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 323 और 504 के अंतर्गत एक एनसीआर पंजीकृत किया गया था और उसके बाद जांच की गई और आवेदकों के विरुद्ध आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया।  यह तर्क दिया गया कि मजिस्ट्रेट ने पुलिस रिपोर्ट को देखे बिना और कानून के प्रावधानों के खिलाफ अपराध का संज्ञान लिया, क्योंकि धारा 2 (डी) सीआरपीसी के अनुसार, यदि जांच के बाद पुलिस रिपोर्ट में असंज्ञेय अपराध का खुलासा होता है, तो यह शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए और जांच अधिकारी/पुलिस अधिकारी को शिकायतकर्ता माना जाएगा और शिकायत मामले की प्रक्रिया का पालन किया जाना है। धारा 2(डी) सीआरपीसी के प्रावध

मोटर वाहन दुर्घटना में मरने वाले गैर कमाई वाले व्यक्ति की वार्षिक आय कितनी माननी चाहिए

 इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में दिए गए एक निर्णय में कहा है कि मोटर वाहन दुर्घटना में हुई मृत व्यक्ति की वार्षिक सम्भावित आय २५००० रुपए से कम नहीं मानी जा सकती।


न्यायमूर्ति के जे ठक्कर और न्यायमूर्ति अजय त्यागी की पीठ ने अपने निर्णय में कहा कि उच्चतम न्यायालय  सरकार को पहले ही आदेश दे चुकी है कि सरकार इस संबंध में वाहन दुर्घटना अधिनियम की अनुसूची II में आवश्यक संशोधन करे, लेकिन अभी तक कोई संशोधन नहीं किया गया है। जे


वर्तमान समय में मुद्रास्फीति की दर,  रुपये की गिरती हुई कीमत और खर्च को देखते हुए किसी की मानक आय 25,000 रुपये से कम होने का अनुमान नहीं लगाया जा सकता है।


उच्च न्यायालय ने रुप चन्द्र के निवासी कानपुर देहात के अपील को स्वीकार करते हुए मोटर वाहन दुर्घटना अधिकरण द्वारा निर्धारित 1,80,000 रुपये के प्रतिकर में संशोधन करते हुए पीड़ित परिवार को 4,70,000 रुपये देने का निर्देश दिया।


18 मार्च 2018 को अपीलकर्ता रूप चंद्रा के सात वर्षीय पुत्र को ट्रक ने टक्कर मार दी थी जिससे उसकी मौके पर ही मृत्यु हो गयी थी। वादी ने मोटर वाहन दुर्घटना अधिनियम के अंतर्गत मोटर वाहन दुर्घटना अधिकरण में दावा दायर  किया।


अधिकरण ने दावे को स्वीकार करते हुए, मोटर दुर्घटना से मृत बालक की संभावित आय को 15,000 रुपये मानते हुए कुल 1,80,000 रुपये का प्रतिकर निर्धारित किया, जिसके विरुद्ध अपीलार्थी द्वारा उच्च न्यायालय में प्रस्तुत अपील दायर की गई थी।


उच्च न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न न्यायिक निर्णयों का हवाला दिया


उच्चतम न्यायालय द्वारा लिए गए विभिन्न समान न्यायिक निर्णयों का उल्लेख करते हुए, उच्च न्यायालय ने निर्णय देते हुए कहा कि मंजू देवी मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा 15 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति की संभावित आय 25000 रुपये मानी गई है।


इसी प्रकार कुर्बान अंसारी मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि गैर-समुदाय के सदस्य की संभावित आय १५,000 रुपये माना जाना अनुचित है, इसलिए वाहन दुर्घटना अधिनियम में संशोधन किया जाना चाहिए।


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