जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते

 इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक निर्णय में कहा है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (डी) के अनुसार, जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते, इसके बजाय इसे शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए। न्यायमूर्ति सैयद आफताफ हुसैन रिजवी ने विमल दुबे और एक अन्य द्वारा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482  के अंतर्गत दायर याचिका को स्वीकार कर ये निर्णय दिया। आवेदकों के अधिवक्ता ने मुख्य रूप से तर्क दिया कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 323 और 504 के अंतर्गत एक एनसीआर पंजीकृत किया गया था और उसके बाद जांच की गई और आवेदकों के विरुद्ध आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया।  यह तर्क दिया गया कि मजिस्ट्रेट ने पुलिस रिपोर्ट को देखे बिना और कानून के प्रावधानों के खिलाफ अपराध का संज्ञान लिया, क्योंकि धारा 2 (डी) सीआरपीसी के अनुसार, यदि जांच के बाद पुलिस रिपोर्ट में असंज्ञेय अपराध का खुलासा होता है, तो यह शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए और जांच अधिकारी/पुलिस अधिकारी को शिकायतकर्ता माना जाएगा और शिकायत मामले की प्रक्रिया का पालन किया जाना है। धारा 2(डी) सीआरपीसी के प्रावध

धारा 138 एनआई एक्ट में कानूनी मांग नोटिस जारी करने की 30 दिन की सीमा कब शुरू होती है।

 धारा 138 एनआई एक्ट में मांग नोटिस जारी करने की 30 दिन की सीमा कब शुरू होती है। 

दिल्ली उच्च न्यायालय ने धारा 138 (बी) एन.आई. एक्ट के अंतर्गत निर्धारित 30 दिनों की सीमा अवधि की गणना पर विधिक स्थिति निर्धारित की है। वैध कानूनी नोटिस जारी करने के लिए अधिनियम में  यह निर्धारित किया है कि जिस दिन शिकायतकर्ता को बैंक से यह सूचना प्राप्त होती है कि विचाराधीन चेक बिना भुगतान के वापस कर दिया गया है, उसे नहीं जोड़ा जाना चाहिए।

दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के अंतर्गत संस्थित कई ऐसी याचिकाओं पर विचार करते हुए, जिनमें आपराधिक शिकायतों को रद्द करने की मांग की गई थी, न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी की एकल-न्यायाधीश खंडपीठ ने निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए कई कानूनी मिसालों और अधिनियम का सहारा लिया।

संक्षेप में मामले के तथ्य

 नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1881 की धारा 138 और 141/142 के अंतर्गत दायर विभिन्न शिकायतों के विरुद्ध याचिकाएं दायर की गई। याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता ने तर्क दिया है कि याचिकाकर्ताओं की शिकायतें पोषणीय नहीं हैं क्योंकि प्रासंगिक विधिक मांग नोटिस विधिक अवधि के बाद जारी किए गए थे।

यह तर्क दिया गया था कि चूंकि उपरोक्त नोटिस अमान्य थे, इसलिए धारा 138 (बी) एन.आई. एक्ट के आवश्यक तत्वों को पूरा नहीं किया गया था, और इस प्रकार उपरोक्त आपराधिक परिवारों को निरस्त कर दिया जाना चाहिए।

ऋण सुविधा के लिए याचिकाकर्ता कंपनी विचार-विमर्श के बाद, शिकायतकर्ता कंपनी और याचिकाकर्ता कंपनी के बीच एक लेन-देन किया गया था, जिसके परिणामस्वरूप तीन चेक दिनांक ३१.०३.२०१५, ३०.०९.२०१५और 30.06.2016को परिवादियो के पक्ष में जारी किए गए थे।  विचाराधीन चेक भुगतान हेतु बैंक में प्रस्तुत करने पर अनादरित हो गए और क्रमशः 29.05.2015, 19.10.2015 और 21.07.2016 के रिटर्न मेमो के माध्यम से “ड्रॉर साइन डिफर” और “नो फंड्स” टिप्पणियों के साथ वापस कर दिए गए।

परिवादी कंपनी को दिनांक 19.06.2015, 29.10.2015 और 27.07.2016 को उक्त चेक के संबंध में अपने बैंक से रिटर्न मीमो प्राप्त हुआ था, जो दर्शाता है कि यह अनादरित हो गया था। परिणामस्वरूप, 07.07.2015, 28.11.2015 और २६.08.2016 को परिवादी कंपनी ने विधिक मांग नोटिस जारी किए, जिसके अनुसार याचिकाकर्ता कंपनी को नोटिस प्राप्त होने के 15 दिनों के भीतर बकाया ऋण चुकाना था। जब वैधानिक समय अवधि के अंदर देय राशि का भुगतान याचिकाकर्ता कंपनी द्वारा नहीं किया गया , तो याचिकाकर्ताओं के खिलाफ उपरोक्त आपराधिक परिवाद दर्ज किए गए।

इस मामले में संक्षिप्त मुद्दा यह है  कि क्या शिकायतकर्ता कंपनी की कानूनी मांग नोटिस धारा 138 (बी) एन.आई.एक्ट द्वारा निर्धारित तीस दिन की समय सीमा अवधि के अंदर भेजी गई थी?

उच्च न्यायालय द्वारा अवलोकन

न्यायालय ने प्रारंभ में कहा कि एन.आई. अधिनियम, एक दंडात्मक क़ानून है इसलिए इस मामले पर सख्त व्याख्या की आवश्यकता है। एन.आई. के अंतर्गत एक आरोपी पर आपराधिक दायित्व निर्धारित से पहले कथित अपराध के आवश्यक अवयवों को स्पष्ट किया जाना चाहिए।

न्यायालय ने उच्चतम न्यायालय के विभिन्न निर्णयों का हवाला दिया और कहा कि शिकायतकर्ता यह तर्क देने के लिए कि मांग नोटिस समय अवधि के अंदर जारी किया गया था वह अपने बैंक से रिटर्न स्टेटमेंट प्राप्त करने की तारीखों पर निर्भर होता है, अर्थात, जिस तारीख को संबंधित चेक के अनादर के संबंध में सूचना प्राप्त हुई थी। वर्तमान मामले में न्यायालय की प्रथम दृष्टया यह राय थी कि कानूनी नोटिस शिकायतकर्ता कंपनी द्वारा चैक अनादरण की सूचना प्राप्त होने के 30 दिनों के भीतर डाक द्वारा भेजे गए थे

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