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जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते

 इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक निर्णय में कहा है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (डी) के अनुसार, जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते, इसके बजाय इसे शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए। न्यायमूर्ति सैयद आफताफ हुसैन रिजवी ने विमल दुबे और एक अन्य द्वारा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482  के अंतर्गत दायर याचिका को स्वीकार कर ये निर्णय दिया। आवेदकों के अधिवक्ता ने मुख्य रूप से तर्क दिया कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 323 और 504 के अंतर्गत एक एनसीआर पंजीकृत किया गया था और उसके बाद जांच की गई और आवेदकों के विरुद्ध आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया।  यह तर्क दिया गया कि मजिस्ट्रेट ने पुलिस रिपोर्ट को देखे बिना और कानून के प्रावधानों के खिलाफ अपराध का संज्ञान लिया, क्योंकि धारा 2 (डी) सीआरपीसी के अनुसार, यदि जांच के बाद पुलिस रिपोर्ट में असंज्ञेय अपराध का खुलासा होता है, तो यह शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए और जांच अधिकारी/पुलिस अधिकारी को शिकायतकर्ता माना जाएगा और शिकायत मामले की प्रक्रिया का पालन किया जाना है। धारा 2(डी) सीआरपीसी के प्रावध

सक्षियों की परीक्षा /Examination of Witnesses

किसी भी वाद या मुकदमा में साक्षी को तीन परीक्षाओं से गुजरना पडता है ।वे निम्न हैं :- (1) मुख्य परीक्षा /Examination -in -chief :- किसी साक्षी की उस पक्षकार द्वारा, जो उसे बुलाता है, परीक्षा उसकी मुख्य परीक्षा कहलायेगी। मुख्य परीक्षा में साक्षी जब न्यायालय में आता है तो उसे शपथ दिलायी जाती है। उसका नाम व पता लिखा जाता है ।उसके बाद जो पक्षकार उसे बुलाता है वह उससे न्यायालय के समक्ष उन समस्त तथ्यों की जानकारी न्यायालय को कराता है जो उस गवाह की व्यक्तिगत जानकारी में होते हैं। इस परीक्षा में साक्षी से केवल सुसंगत तथ्यों के बारे मे सवाल किये जा सकते हैं। इस परीक्षा में साक्षी से सूचक सवाल नहीं पूछे जा सकते। (2) प्रति परीक्षा /Cross Examination :- विरोधी पक्षकार द्वारा किसी गवाह की परीक्षा को प्रति परीक्षा कहते हैं। किसी गवाह का साक्षय तब तक वैध नहीं माना जाएगा जब तक कि विपक्षी को प्रति परीक्षा का अवसर न दिया गया हो। प्रतिपरीक्षा को सत्यता का बहुत बड़ा अस्त्र माना जाता है। प्रतिपरीक्षा में साक्षी से कोई भी प्रश्न पूछा जा सकता है सिवाय विधि द्वारा प्नतिबधित प्रश्नों के। इस परीक्षा में गवाह क

FIR लिखवाने के तरीके

जब एक व्यक्ति के विरुद्ध किसी अन्य व्यक्ति ने कोई अपराध किया है तो पीडित व्यक्ति को अधिकार है कि वह अपराधी के विरूद्ध सम्बन्धित थाने में लिखित रुप में या मौखिक रुप में शिकायत कर सकता है जिसे थाने का प्रभारी अधिकारी पंजीकृत करेगा या अपने अधीनस्थ अधिकारी से पंजीकृत करायेगा। यदि अपराध किसी महिला के विरुद्ध किया गया है और वह बलात्कार या छेडछाड से सम्बन्धित है तो वह किसी महिला पुलिस अधिकारी द्वारा पंजीकृत किया जायेगा। जब शिकायत लिखित रुप में पंजीकृत की जाती है तो उसकी एक प्रति शिकायतकर्ता को निशुल्क प्रदान की जायेगी । यदि थाने का प्रभारी अधिकारी FIR पंजीकृत करने से इनकार करता है तो पीडित व्यक्ति को अधिकार है कि वह अपराधी के विरूद्ध सम्बन्धित वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को पंजीकृत डाक द्वारा सूचना भेजे। और यदि उसके पास विश्वास करने का कारण है तो वह या तो उस अपराध का अन्वेषण स्वयं करेगा या फिर अपने किसी अधीनस्थ अधिकारी को अन्वेषण करने का आदेश दे सकता है। यदि वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक भी कोई कार्यवाही नहीं करता है तो पीडित क्षेत्राधिकार रखने वाले न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय में परिवाद संस्थित कर स

मुस्लिम पत्नी को तलाक का अधिकार /Right to Divorce of Muslim Wife :-

मुस्लिम पत्नी को भी निम्न प्रकार तलाक देने का अधिकार है - (1)तलाक -ए-तफवीज /प्रत्यायोजित तलाक /Delegated Talaq :-         मुस्लिम पति अपने तलाक देने के अधिकार को किसी व्यक्ति को प्रत्यायोजित कर सकता है। ऐसा व्यक्ति स्वयं पत्नी भी हो सकती है। जब पत्नी इस अधिकार के अधीन तलाक देती है तो इसे प्रत्यायोजित तलाक कहते हैं। (2) सहमति से तलाक /Talaq by mutual consent :-            इसके अन्तर्गत निम्न तलाक आते हैं - (क)  खुला :- जब पत्नी तलाक का प्रस्ताव करती है और पति सहमति प्रदान करता है और पत्नी सहमति के लिए कुछ प्रतिफल भी प्रदान करती है तो इसे खुला कहते हैं। इसकी निम्न अपेक्षाएं हैं - (1) पति और पत्नी व्यस्क एवं स्वस्थ चित हों। (2) पत्नी द्वारा विवाह विच्छेद का प्रस्ताव किया गया हो और पति द्वारा स्वीकार किया गया हो। (3) पत्नी द्वारा विवाह विच्छेद की सम्मति के लिए पति को कुछ धन दिया गया हो। (4) पति और पत्नी दोनों द्वारा सहमति प्रदान की गई हो। (ख) मुबारत :-   मुबारत में पत्नी या पति दोनों मे से कोई भी तलाक का प्रस्ताव कर सकता है और दूसरा पक्ष उसे स्वीकार कर सकता है। और इसमें कोई  प्रत

Dishonour Of Cheque /चैक का अनादरण

खाते में निधि की अपर्याप्तता आदि के कारण चैक का अनादरण (धारा 138):-        जहाँ किसी व्यक्ति ने किसी ऋण या दायित्व के निर्वाह के लिए बैंक के खाते का चैक दिया है और वह खाते में अपर्याप्त निधि या अन्य कारण से असंदत्त लौटा दिया है तो यह समझा जायेगा कि ऐसे व्यक्ति ने अपराध किया है और जिसे दो वर्ष तक के कारावास या चैक की रकम से दुगुनी तक जुर्माना या दोनों से दंडनीय होगा : परन्तु जब यदि :-    (1)चैक लिखने की तारीख से तीन महीने के अन्दर चैक बैंक में प्रस्तुत न कर दी गई हो। (2) चैक के धारक या पाने वाले ने असंदत्त चैक के वापसी की सूचना की प्राप्ति के बाद तीस दिन के भीतर लेखीवाल को लिखित नोटिस द्वारा धन की मांग न की हो। (3) ऐसी चैक का लेखीवाल नोटिस प्राप्त करने के बाद 15 दिन के भीतर धनराशि का सन्दाय करने में असफल नही रहा हो।     धारा 139:- यदि विपरीत साबित न हो तो यह समझा जायेगा कि चैक ऋण के संदाय के लिए गया था।    धारा 140:- ऐसे अपराध में यह प्रतिरक्षा नहीं होगी कि चैक जारी करते समय वह यह नहीं जानता था कि चैक अनाद्रत हो जाएगा।   धारा 141:- कम्पनियों द्वारा अपराध ।    धारा 142:- जब मा

Kanunigyan :- भरण पोषण का अधिकार :

Maintenance under Criminal Procedure Code /दण्ड प्रक्रिया संहिता के अन्तर्गत भरण-पोषण धारा 125 :- कौन भरण पोषण प्राप्त करने के हकदार हैं :- (1) पत्नी -किसी व्यक्ति की पत्नी पति से भरण पोषण प्राप्त करने की हकदार है जो स्वयं अपना भरण पोषण करने में असमर्थ है ।    'पत्नी' से अभिप्राय ऐसी स्त्री से है जिसके पति ने उससे विवाह विच्छेद कर लिया है या जिसने अपने पति से विवाह विच्छेद कर लिया है और पुनर्विवाह नहीं किया है। वैध रुप से विवाहित पत्नी से है। (2) अव्यस्क धर्मज या अधर्मज पुत्र या पुत्री चाहे विवाहित हो या न हो :- अव्यस्क धर्मज या अधर्मज अवयस्क पुत्र या पुत्री चाहे विवाहित हो या न हो अपने पिता से भरण पोषण प्राप्त करने के हकदार हैं। (3) व्यस्क पुत्र या पुत्री जो विवाहित हैं और व्यस्क हैंअपने पिता से भरण पोषण प्राप्त करने के हकदार हैं यदि वे किसी असमर्थता से ग्रस्त हैं। (4) माता -पिता :- जो माता पिता भरण पोषण करने में असमर्थ हैं पुत्र से भरण पोषण प्राप्त करने के हकदार हैं। पुत्री से भी भरण पोषण प्राप्त करने के हकदार हैं   यदि पुत्री के पास पर्याप्त साधन हैं।     भरण पोषण का

Hindu Adoption /हिन्दू दत्तक ग्रहण

मान्य दत्तक ग्रहण की अपेक्षाएं :- दत्तक ग्रहण एवं भरण पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 6 केअनुसार  मान्य दत्तक ग्रहण की निम्न अपेक्षाएं हैं    (1) दत्तक ग्रहीता व्यक्ति दत्तक ग्रहण करने की क्षमता रखता हो। (2) दत्तक देने वाला व्यक्ति ऐसा करने की क्षमता रखता हो। (3) दत्तक लिया जाने वाला व्यक्ति इस योग्य हो। (4) दत्तक ग्रहण की अन्य शर्त का पालन किया गया हो।     धारा 7 के अनुसार पुरूष हिन्दू की दत्तक ग्रहण की सामर्थ्य-कोई पुरुष जो हिन्दू है, स्वस्थ चित है और व्यस्क है वह दत्तक ग्रहण द्वारा पुत्र या पुत्री दत्तक ले सकेगा।       यदि वह विवाहित है तो पत्नी की सम्मति आवश्यक है। यदि एक से अधिक पत्तियां है तो सभी की सम्मति आवश्यक है जब तक कि          उसने संसार का परित्याग न किया हो, धर्म परिवर्तन न किया हो,या सक्षम न्यायालय द्वारा पागल न घोषित की गई हो।       धारा 8 हिन्दू नारी को दत्तक लेने की सामर्थ्य :- एक अविवाहित, तलाक शुदा या विधवा हिन्दू नारी पुत्र या पुत्री दत्तक ले सकेगी। किन्तु विवाहित नारी तभी दत्तक ले सकेगी यदि -      उसका पति सन्यासी हो गया हो, उसने धर्म परिवर्तन कर लिया हो या स

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