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जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते

 इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक निर्णय में कहा है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (डी) के अनुसार, जहां असंज्ञेय अपराध शामिल हैं, मजिस्ट्रेट पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र का संज्ञान नहीं ले सकते, इसके बजाय इसे शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए। न्यायमूर्ति सैयद आफताफ हुसैन रिजवी ने विमल दुबे और एक अन्य द्वारा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482  के अंतर्गत दायर याचिका को स्वीकार कर ये निर्णय दिया। आवेदकों के अधिवक्ता ने मुख्य रूप से तर्क दिया कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 323 और 504 के अंतर्गत एक एनसीआर पंजीकृत किया गया था और उसके बाद जांच की गई और आवेदकों के विरुद्ध आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया।  यह तर्क दिया गया कि मजिस्ट्रेट ने पुलिस रिपोर्ट को देखे बिना और कानून के प्रावधानों के खिलाफ अपराध का संज्ञान लिया, क्योंकि धारा 2 (डी) सीआरपीसी के अनुसार, यदि जांच के बाद पुलिस रिपोर्ट में असंज्ञेय अपराध का खुलासा होता है, तो यह शिकायत के रूप में माना जाना चाहिए और जांच अधिकारी/पुलिस अधिकारी को शिकायतकर्ता माना जाएगा और शिकायत मामले की प्रक्रिया का पालन किया जाना है। धारा 2(डी) सीआरपीसी के प्रावध

क्या भारतीय दण्ड संहिता की धारा 324 जमानतीय और शमनीय है

 भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 324 के अंतर्गत दंडनीय अपराध की प्रकृति के संबंध में आज भी यह भ्रम है कि क्या  धारा 324 के अंतर्गत दण्डनीय अपराध जमानतीय है या गैर-जमानतीय। शमनीय है या अशमनीय। इस लेख में प्रासंगिक वैधानिक उपबन्धो, विधिक संशोधनों, राजपत्र अधिसूचनाओं और न्यायशास्त्रीय विकास का विश्लेषण करते हुए उक्त भ्रम को दूर करने का प्रयास किया है। भारतीय दंड संहिता,1860 की धारा ३२४ मूल रूप से आईपीसी की धारा ३२४ के प्रावधान निम्न है: "आईपीसी की धारा 324: खतरनाक हथियारों से स्वेच्छा से चोट पहुंचाना। धारा 334 द्वारा प्रदान किए गए मामले को छोड़कर स्वेच्छा से गोली मारने, छुरा घोंपने, काटने से चोट का कारण बनता है, जो अपराध के हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इससे मृत्यु होने की संभावना है। इसमें किसी भी गर्म पदार्थ, जहर, संक्षारक पदार्थ, किसी विस्फोटक पदार्थ या किसी भी ऐसे पदार्थ से जो मानव शरीर को श्वास लेने, निगलने या रक्त प्रवाह में हानिकारक है, ऐसे अपराधी को तीन वर्ष अवधि के कारावास से दंडित किया जा सकता है। इसके साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है। अपराध की प्रकृति को देखत

क्या अपीलीय न्यायालय अपील को अधिवक्ता के उपस्थित रहते हुए बहस करने से इन्कार करने पर गुण दोष के आधार पर निरस्त कर सकता है

 इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक निर्णय में कहा है कि जब एक अपील को अपीलीय न्यायालय द्वारा इस तथ्य के आधार पर खारिज कर दिया जाता है कि अपीलकर्ता के वकील  अदालत में  उपस्थित हैं, लेकिन किसी भी कारण से उस पर बहस करने से इनकार करते हैं, तो अपील  आदेश 41 नियम १७(१) सिविल प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत  गुण दोष के आधार पर निरस्त नहीं की जा सकती हैं ।  यह ध्यान रखना चाहिए है कि आदेश 41 नियम 17 सीपीसी के स्पष्टीकरण में कहा गया है कि अपीलीय न्यायालय उन मामलों में गुण-दोष के आधार पर अपील को खारिज नहीं कर सकता है, जहां निर्धारित दिन पर, या किसी अन्य दिन जिस पर सुनवाई स्थगित की गई है है, अपीलकर्ता के अधिवक्ता न्यायालय में उपस्थित  है लेकिन बहस न करें।  इस मामले में, न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय की खंडपीठ ने एक जानकी प्रसाद की दूसरी अपील पर विचार करते हुए निम्नलिखित कथन किया:  "... आदेश 41 नियम 17सीपीसी का स्पष्टीकरण उन मामलों में भी लागू होता है जहां अपीलकर्ता के वकील, हालांकि अदालत में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होते हैं, जब अपील को सुनवाई के लिए बुलाया जाता है, लेकिन अपील पर बहस करने से इनकार

मोटर वाहन दुर्घटना में मरने वाले गैर कमाई वाले व्यक्ति की वार्षिक आय कितनी माननी चाहिए

 इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में दिए गए एक निर्णय में कहा है कि मोटर वाहन दुर्घटना में हुई मृत व्यक्ति की वार्षिक सम्भावित आय २५००० रुपए से कम नहीं मानी जा सकती। न्यायमूर्ति के जे ठक्कर और न्यायमूर्ति अजय त्यागी की पीठ ने अपने निर्णय में कहा कि उच्चतम न्यायालय  सरकार को पहले ही आदेश दे चुकी है कि सरकार इस संबंध में वाहन दुर्घटना अधिनियम की अनुसूची II में आवश्यक संशोधन करे, लेकिन अभी तक कोई संशोधन नहीं किया गया है। जे वर्तमान समय में मुद्रास्फीति की दर,  रुपये की गिरती हुई कीमत और खर्च को देखते हुए किसी की मानक आय 25,000 रुपये से कम होने का अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। उच्च न्यायालय ने रुप चन्द्र के निवासी कानपुर देहात के अपील को स्वीकार करते हुए मोटर वाहन दुर्घटना अधिकरण द्वारा निर्धारित 1,80,000 रुपये के प्रतिकर में संशोधन करते हुए पीड़ित परिवार को 4,70,000 रुपये देने का निर्देश दिया। 18 मार्च 2018 को अपीलकर्ता रूप चंद्रा के सात वर्षीय पुत्र को ट्रक ने टक्कर मार दी थी जिससे उसकी मौके पर ही मृत्यु हो गयी थी। वादी ने मोटर वाहन दुर्घटना अधिनियम के अंतर्गत मोटर वाहन दुर्घटना अधिकरण में द

क्या उत्तर प्रदेश गैंगस्टर अधिनियम के अंतर्गत कार्यवाही होने पर सम्पत्ति जब्त होना निश्चित है

 २७दिसम्बर,२०२१ के बाद अब यह निश्चित हो गया है कि यदि किसी व्यक्ति पर उतर प्रदेश गिरोह अधिनियम के अंतर्गत आरोप लगा तो उसकी संपत्ति जब्त होना निश्चित है क्योंकि इस तारीख से नई नियमावली लागू होने के बाद डीएम के अधिकार बढ़ा दिए गए हैं। उत्तर प्रदेशगैंगस्टर अधिनियम के अंतर्गत होने वाली सभी कार्यवाही अब गैंगस्टर अधिनियम नियमावली से की जाएगी। इसके पूर्व संपत्ति जब्त करना एक विकल्प के रूप में था और भिन्न भिन्न मामलों में भिन्न भिन्न निर्णय लिया जा सकता  था। गिरोह बन्दी अधिनियम की कार्यवाही होने पर अब अन‍िवार्य रूप से संपत्‍त‍ि जब्‍त होगी।  उत्तर प्रदेश गैंगस्टर अधिनियम के अंतर्गत कार्यवाही होने पर आरोपित की संपत्ति अनिवार्य रूप से उद्घघृत कर ली जाएगी। उत्तर  प्रदेश राज्य में पहली बार लागू हुई गैंगस्टर नियमावली-2021 में इसका उपबंध किया गया है। गैंगस्टर अधिनियम के अंतर्गत होने वाली सभी कार्यवाहियां अब गैंगस्टर अधिनियम नियमावली से की जाएगी। पहले संपत्ति जब्त करना वैकल्पिक था और अलग-अलग मामलों के अनुसार निर्णय लिया जा सकता था।  गोरखपुर के पुलिस लाइन में हुई कार्यशाला में वरिष्ठ अभियोजन अधिकारी बी

क्या चालक अनुज्ञप्ति नवीनीकृत नहीं होने पर बीमा कंपनी प्रतिकर से बच सकती है

  क्या दुर्घटना के समय चालक अनुज्ञप्ति नवीनीकृत  नहीं होने पर बीमा कंपनी प्रतिकर देने के उत्तरदायित्व से बच सकती है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक निर्णय दिया है जिससे यह मत व्यक्त किया है कि यदि दुर्घटना के समय चालक अनुज्ञप्ति रिन्यू नहीं है तो भी बीमा कंपनी को पीड़ित को प्रतिकर का भुगतान करना होगा। वह प्रतिकर देने से नहीं बच सकती। यह आदेश इलाहाबाद हाईकोर्ट की एकल पीठ ने न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है। न्यायालय ने कहा कि चालक अनुज्ञप्ति का रिन्यूअल नहीं होने से यह साबित नहीं होता है कि चालक वाहन चलाने में सक्षम नहीं था। यदि कंपनी प्रतिकर का भुगतान करने से बचना चाहती है, तो उसे यह साबित करना पड़ेगा कि चालक वाहन चलाने के लिए अयोग्य था।  इसलिए बीमा कंपनी दावे के भुगतान के लिए उत्तरदायी है। बीमा कंपनी इस आधार पर छूट नहीं प्राप्त कर सकती कि चालक की अनुज्ञप्ति का रिन्यूअल नहीं कराया गया है। घटना 22 जुलाई १९९२ की मेरठ जनपद की है। बस चालक सुधीर मोहन तनेजा बस को साइड में करते समय ट्रक की चपेट में आ गया था। उपचार के दौरान उसकी मृत्यु हो गई। याचिकाकर्ता 

क्या अपराधिक विचारण में दोषमुक्त होने का अनुशासनात्मक कार्यवाही पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा

 उच्चतम न्यायालय ने आदेश दिया है कि किसी आपराधिक विचारण में दोषमुक्त होने का अनुशासनात्मक कार्यवाही पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। अपराधिक विचारण और अनुशासनात्मक कार्यवाही दोनों मामलों में सबूत के मानक भिन्न भिन्न हैं और कार्यवाही भी भिन्न भिन्न क्षेत्रों में भिन्न भिन्न उद्देश्यों के लिए संचालित होती है। न्यायमूर्ति एमआर शाह और बीवी नागरत्ना की पीठ ने औद्योगिक अधिकरण द्वारा पारित एक आदेश को निरस्त करते हुए आदेश दिया कि जिसमें महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम के चालक को बहाल करने का निर्देश दिया गया था जिसकी सेवाओं को अनुशासनात्मक जांच के बाद समाप्त कर दिया गया था। चालक के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू की गई थी क्योंकि वह जिस बस को चला रहा था, उसकी जीप से टक्कर हो गई, जिससे चार यात्रियों की घटना स्थल पर ही मृत्यु हो गई। अधिकरण द्वारा यह पाया गया कि चालक की ओर से लापरवाही की गई थी और उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। अधिकरण ने माना कि आपराधिक मामले में दोषमुक्त होना कर्मचारी के बचाव में नहीं आएगा क्योंकि आपराधिक मामले में बरी होने का कारण जांच अधिकारी, पंच के लिए स्पॉट पंचनामा आदि

भारत में विवाह का पंजीकरण कैसे कराएं

  विवाह  प्रमाण पत्र  यदि आप विवाह प्रमाण पत्र बनवाना चाहते हैं तो उसके लिए विवाह पंजीकरण करवाना आवश्यक हैं । उसके लिए आपको अपने राज्य की आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर ऑनलाइन आवेदन करना होगा। इससे समय और धन दोनों की बचत होगी तथा भाग दौड़ से भी बचा जा सकता है। इसके लिए आप ऑफलाइन आवेदन कर सकते  हैं। विवाह पंजीकरण कराने के लिए आपको एक निर्धारित शुल्क  भी अदा करना होगा। यदि आप समय से विवाह पंजीकरण नहीं करवाते हैं तो आपको जुर्माना भी देना पड़ सकता है। यह शास्ति की राशि अलग-अलग राज्यों के लिए अलग-अलग निर्धारित की गई है। विवाह पंजीकरण का उद्देश्य जैसे कि  सभी लोग जानते हैं कि शादी के बाद कुछ महिलाओं को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। जैसे कि घरेलू हिंसा, बाल विवाह, पति की मृत्यु हो जाने पर पति के रिश्तेदारों द्वारा घर से निकाला जाना आदि। इन्हीं समस्याओं को देखते हुए भारत सरकार द्वारा विवाह पंजीकरण अनिवार्य कर दिया गया है ताकि महिलाओं के साथ होने वाले इस दुर्व्यवहार को रोका जा सके। अब सभी धर्म के नागरिकों को यह पंजीकरण करवाना अनिवार्य है। विवाह पंजीकरण के लाभ तथा विशेषताएं  1.विवाह प्र

राशन डीलर की अनियमितताओं की जांच के लिए शिकायत कैसे करे।

 राशन डीलर राशन वितरण में इसलिए अनियमितता कर पाता है क्योंकि अधिकतर लोग यह नही जानते कि डीलर की शिकायत कहां  और कैसे करें ? लेकिन यदि राशन कार्ड धारक  जागरूक नहीं होगा, तो राशन डीलर राशन वितरण में गड़बड़ी करते रहेंगे। इसलिए हमको यह जानना बहुत आवश्यक है कि राशन डीलर की शिकायत कैसे और कहां करें ? चलिए  इसके बारे में  पूरी जानकारी  बताते है। राशन डीलर की शिकायत कैसे करें ? राशन डीलर की शिकायत करने के लिए सभी राज्यों के खाद्य विभाग ने  हेल्पलाइन नंबर जारी किया है। आप उस शिकायत नंबर पर फोन करके  राशन डीलर की शिकायत कर सकते है। नीचे तालिका में  राज्य का नाम एवं राशन डीलर का शिकायत नंबर दिया गया है राज्य का नाम-- शिकायत नंबर आंध्रप्रदेश -१८००-४२५-२९७७ अरुणाचल प्रदेश -०३६०२२४४२९० असम -1800-345-3611 बिहार 1800-3456-194 छ्त्तीसगढ़ 1800-233-3663 गोवा -      1800-233-0022 गुजरात 1800-233-5500 हरियाणा 1800-180-2087 हिमाचल प्रदेश 1800-180-8026 झारखंड 1800-345-6598, १८००-212-5512 कर्नाटक   १८००-425-1550 मध्यप्रदेश   181 महाराष्ट्र 1800-22-4950 मणिपुर 1800-345-3821 मेघालय

क्या बीमा कंपनी बीमाधारक द्वारा बताई वर्तमान चिकित्सा स्थिति का हवाला देकर दावा को खारिज कर सकती है।

 उच्चतम न्यायालय ने बीमा धारकों के पक्ष में एक बड़ा फैसला किया है। अब बीमा कंपनी बीमाधारक द्वारा बताई वर्तमान चिकित्सा स्थिति का हवाला देकर दावा को खारिज नहीं कर सकती। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बैंच ने कहा कि प्रस्तावक का कर्तव्य है कि वह बीमाकर्ता को दी जाने वाली जानकारी में सभी महत्वपू्र्ण तथ्यों का उल्लेख करें। यह माना जाता है कि प्रस्तावक बीमा से जुड़ी सभी जानकारी को जानता है। बैंच ने कहा, 'हालांकि वह जो जानकारी देता है, वह उसके वास्तविक ज्ञान तक सीमित नहीं है।' यह उन भौतिक तथ्यों तक है, जो कार्य की सामान्य प्रक्रिया में उसे जानना चाहिए। न्यायालय ने आगे कहा कि एक बार बीमाधारक की मेडिकल स्थिति का आकलन करने के बाद पॉलिसी जारी हो जाए, तो बीमाकर्ता उस मौजूदा चिकिस्ता स्थिति का हवाला देकर दावा खारिज नहीं कर सकता जिसे बीमाधारक ने प्रस्ताव फॉर्म में बताया था।  सर्वोच्च न्यायालय मनमोहन नंदा द्वारा राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के आदेश के विरुद्ध संस्थित अपील पर सुनवाई कर रहा था। दरअसल यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी ने यूएस में इलाज के खर्चे का नंदा का दावा खारिज कर दिया था

क्या किराएदार किसी भवन का स्वामी बन सकता है और किरायानामा 11 महीने ही क्यों बनाया जाता है

 किराया अनुबंध और किरायानामा के लिए क्या क्या कार्य आवश्यक होते हैं यह जानकारी प्राप्त करना बहुत जरूरी होता है ताकि भविष्य में किसी परेशानी का सामना न करना पड़े। तो आओ जानते हैं उन सभी आवश्यक बातों को। जो कि निम्न प्रकार हैं-  अनुबंध और किराए की रसीद आवश्यक है किराएदारी के मामलों  में अक्सर यह देखा गया है कि किराया एग्रीमेंट और किराए की रसीद के सम्बन्ध में मकान स्वामी और किराएदार सतर्क नहीं होते हैं। भवन स्वामी भी अपना किरायानामा बनवाने में चूक करते है और किराएदार भी इस पर बल नहीं देते हैं जबकि यह बहुत घातक हो सकता है। किसी भी संपत्ति को किराए पर देने  पूर्व उसका किरायानामा निष्पादित किया जाना चाहिए और हर महीने के किराए की वसूली की  भवन स्वामी द्वारा किराएदार को किराया प्राप्ति की रसीद देना चाहिए । ऐसा करने से  सबूत भविष्य के लिए उपलब्ध रहते हैं। और इससे  भविष्य में यह साबित किया जा सकता है कि जो व्यक्ति भवन पर अपना कब्जा बना कर बैठा है वह भवन पर एक किराएदार की हैसियत से है। यदि ऐसा कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं हो तो भवन पर कब्जा रखने वाला व्यक्ति यह भी क्लेम कर सकता है कि वह भवन स्वामी की
 क्या  मुस्लिम लड़की 18 वर्ष से कम आयु में अपनी मर्ज़ी से शादी कर सकती है पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने पुलिस को एक 17 वर्षीय मुस्लिम लड़की की सुरक्षा देने का आदेश दिया है, जिसने अपने परिवार और रिश्तेदारों की इच्छा के विरुद्ध एक हिंदू लड़के से शादी की थी। अपने आदेश में न्यायालय ने कहा कि क्योंकि वह एक मुस्लिम लड़की है वह युवावस्था में पहुंचने के बाद किसी से भी शादी करने के लिए स्वतंत्र थी, जिसका अर्थ है कि देश के कानून द्वारा निर्धारित न्यूनतम शादी की उम्र मुसलमानों पर लागू नहीं होती है। न्यायालय ने कहा कि परिवार को हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है। न्यायमूर्ति हरनरेश सिंह गिल ने कहा, “कानून स्पष्ट है कि मुस्लिम लड़की की शादी मुस्लिम पर्सनल लॉ द्वारा शासित होती है।” सर दिनशाह फरदुनजी मुल्ला द्वारा ‘मोहम्मडन कानून के सिद्धांत’ पुस्तक के अनुच्छेद 195 के अनुसार , मुस्लिम लड़की याची संख्या 1, 17 वर्ष की आयु में, अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ विवाह अनुबंध में प्रवेश करने के लिए सक्षम है। उसके साथी की उम्र 33 साल के आसपास बताई जा रही है। नतीजतन, याचिकाकर्ता नंबर 1 मुस्लिम पर्सनल लॉ के

मानसिक बीमारी के आधार पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने पति को तलाक की डिक्री प्रदान की

दिल्ली उच्च न्यायालय ने १६ वर्ष पुराने एक विवाह को विच्छेदित करते हुए निर्णय दिया कि मानसिक रूप से अस्वस्थ जीवनसाथी के साथ रहना आसान नहीं है, क्योंकि इसमें पत्नी ने यह तथ्य छुपाया था कि वह सिजोफ्रेनिया से पीड़ित थी। जस्टिस विपिन सांघी और जसमीत सिंह की पीठ ने पति द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि विवाह केवल सुखद यादों और अच्छे समय से नहीं बनता है, विवाह में दो व्यक्तियों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता हैं और एक साथ परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे साथी के साथ रहना आसान नहीं है, जो मानसिक रूप से अस्वास्थ्य  हो, इस तरह की समस्याओं का सामना करने वाले व्यक्ति के लिए अपनी अलग चुनौतियां होती हैं, और इससे भी अधिक उसके जीवनसाथी के लिए। विवाह में समस्याओं और भागीदारों के बीच संचार की समझ होनी चाहिए, विशेषकर जब विवाह में दो पक्षों में से एक ऐसी चुनौतियों का सामना कर रहा हो।   न्यायालय ने पत्नी द्वारा विवाह से पूर्व अपनी मानसिक बीमारी का खुलासा नहीं करने पर कहा कि यह याची के साथ एक धोखाधड़ी थी। कोर्ट ने पाया कि पत्नी ने कभी भी पति को अपनी मानसिक बीमारी के बारे में नहीं बताया

क्या दहेज उत्पीड़न के मामले मे पति के परिवार के सदस्यों को आरोपी बनाया जा सकता है।

 दहेज उत्पीड़न के एक मामले में उच्चतम न्यायालय ने एक महिला और एक पुरुष के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी है। शीर्ष अदालत ने कहा कि वैवाहिक विवादों में बार-बार पति के परिवार के सदस्यों को प्रथम सूचना रिपोर्ट में यूं ही घसीटकर आरोपित बनाया जा रहा है।जोकि गलत है।     जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी और जस्टिस हृषिकेश राय की पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस आदेश को खारिज कर दिया जिसमें दहेज हत्या के मामले में आरोपित मृतका के देवर और सास को समर्पण करने और जमानत के लिए आवेदन करने का निर्देश दिया गया था।    शीर्ष न्यायालय ने कहा कि बड़ी संख्या में परिवार के सदस्यों को प्राथिमिकी में यूं ही नामों का उल्लेख करके प्रदर्शित किया गया है, जबकि विषय-वस्तु अपराध में उनकी सक्रिय भागीदारी को उजागर नहीं करती, इसलिए उनके खिलाफ मामले का संज्ञान लेना उचित नहीं था। यह भी कहा गया है कि इस तरह के मामलों में संज्ञान लेने से न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग होता है। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि मृतका के पिता द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत का अवलोकन करने से आरोपित की संलिप्तता को उजागर करने वाले किसी विशेष आरोप का संकेत नहीं

किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी कब आवश्यक है

   इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने रूटीन गिरफ्तारी को लेकर अहम निर्देश दिया है। हाईकोर्ट ने कहा है कि विवेचना के लिए पुलिस कस्टडी में पूछताछ के लिए जरूरी होने पर ही गिरफ्तारी की जाए। कोर्ट ने कहा है कि गिरफ्तारी अंतिम विकल्प होना चाहिए. गैरजरूरी गिरफ्तारी मानवाधिकार का हनन है। जोगिंदर सिंह केस में सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय पुलिस आयोग की रिपोर्ट के हवाले से कहा है कि रूटीन गिरफ्तारी पुलिस में भ्रष्टाचार का स्रोत है। रिपोर्ट कहती है 60 फीसदी गिरफ्तारी गैरजरूरी और अनुचित होती है। जिस पर43.2 फीसदी जेल संसाधनों का खर्च हो जाता है।    उच्च न्यायालय ने कहा कि वैयक्तिक स्वतंत्रता बहुत ही महत्वपूर्ण मूल अधिकार है। बहुत जरूरी होने पर ही इसमें कटौती की जा सकती है। गिरफ्तारी से व्यक्ति के सम्मान को ठेस पहुंचती है। इसलिए अनावश्यक गिरफ्तारी से बचना चाहिए। कोर्ट ने दहेज उत्पीड़न, मारपीट गाली-गलौज करने के आरोपी राहुल गांधी की अग्रिम जमानत मंजूर कर ली है। कोर्ट ने कहा है कि गिरफ्तारी के समय 50 हजार के मुचलके व दो प्रतिभूति लेकर जमानत पर रिहा कर दिया जाए। यह आदेश जस्टिस अजीत सिंह के एकल पीठ ने गौतमबुद्धनगर क

भारतीय दण्ड संहिता की धारा 397 के अंतर्गत अपराध के आवश्यक तत्व क्या है

शिकायतकर्ता की शिकायत दर्ज करने और जांच पूरी होने पर, पुलिस ने भारतीय दण्ड संहिता की धारा 392/397 और मध्य प्रदेश डकैती और व्यापार प्रभाव क्षेत्र अधिनियम १९८१  की धारा 11/13 के अंतर्गत आरोप पत्र दाखिल किया।           26 फरवरी, 2013 को विचारण न्यायालय ने अपीलकर्ता और छोटू के खिलाफ आईपीसी की धारा 392/397 और एमपीडीवीपीके अधिनियम, 1981 की धारा 11/13 के अंतर्गत आरोप तय किए। सबूतों का विश्लेषण करने पर, विचारण न्यायालय ने कहा कि अपीलकर्ता और उसके सह-आरोपी घटना में लिप्त थे और आरोप को साबित किया गया है। तदनुसार सजा और दोषसिद्धि करार दे दी।      विचारण न्यायालय के फैसले का विरोध करते हुए, अपीलकर्ता और सह-आरोपी ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, जिसमें उन्होंने तर्क दिया कि उनके खिलाफ मामले में झूठा आरोप लगाया गया था और आईपीसी की धारा ३९७ के अंतर्गत आरोप कायम नहीं रखा जा सकता है। उन्होंने आगे तर्क दिया कि आग्नेयास्त्र भले ही साबित हो गया हो, लेकिन इसका प्रयोग नहीं किया गया था और इस तरह धारा 397 आईपीसी के अंतर्गत आरोप तय नहीं होगा। सबूतों की विस्तार से समीक्षा करने के बाद, उच्च न्यायालय ने विचारण

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